हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम (हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं) रूमी … फिर इक दिन ऐसा आएगा आँखों के दिये बुझ जाएँगे हाथों के कँवल कुम्हलाएँगे और बर्गे-ज़बाँ से नुत्क़ो-सदा की हर तितली उड़ जाएगी इक काले समन्दर की तह में कलियों की तरह से खिलती हुई फूलों की तरह से हँसती हुई सारी…
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