धरती ने मुझे सिखलाया है- सब कुछ स्वीकारना सब कुछ के बाद सबसे परे हो जाना हर ऋतु में बदलना यह जानते हुए कि स्थिरता मृत्यु है चलते चले जाना है अन्दर और बाहर। अग्नि ने मुझे सिखलाया है- तृष्णा में जलना नाचते-नाचते हो जाना राख दुख से होना तपस्वी काली चट्टानों के दिल और…
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