Amen- कुछ और नज़्में
Amen Give everything away— Ideas, breath, vision, thoughts. Peel off words from the lips, and sounds from the tongue. Wipe … Continue reading Amen- कुछ और नज़्में
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रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… आस्मान बुझता ही नहीं, … Continue reading रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है…
मेरे भीतर से उठ रहा है ख़लाओं का काला चाँद ढक रहा है मेरे सूरज को धीरे धीरे रंगों … Continue reading सूर्य ग्रहन- नेहल
मख़मली ढलानों पर मख़मली ढलानो पर आख़िरी आवाज़ थम चुकी है चरवाहे की दिन है कि दबे पांव गुज़र रहा … Continue reading मख़मली ढलानों पर – दीप्ति नवल
आसमान जब मुझे अपनी बाँहों में लेता है और ज़मीन अपनी पनाहों में लेती है मैं उन दोनों के … Continue reading अहसास – आशमा कौल
बिखरे हुये लम्हों की लडी बना ली है जब चाहे गले मे डाल ली जब चाहे उतार दी झील का … Continue reading एक शाम – अनुपमा चौहान
तलाश जारी है इन दिनों कविताओं में यथार्थ की जीवन के लक्ष्य की मानवता के उपसंहार की सबकी भिन्न रचनाओं … Continue reading सच इतना भर ही है – अर्चना कुमारी
उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता हमेशा हो सितारा हम-सफ़र आसाँ नहीं होता जो आँखों ओट है चेहरा उसी को … Continue reading उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता
आ गया था ऐसा वक्त कि भूमिगत होना पड़ा अंधेरे को नहीं मिली कोई सुरक्षित जगह उजाले से ज्यादा। छिप … Continue reading दो कविताएँ – वेणु गोपाल
जब साज़ की लय बदल गई थी वो रक़्स की कौन सी घड़ी थी रक़्स- dance अब याद नहीं कि … Continue reading जब साज़ की लय बदल गई थी
कोई ख़्वाब सर से परे रहा ये सफ़र सराब-ए-सफ़र रहा मैं शनाख़्त अपनी गँवा चुका गई सूरतों की तलाश में … Continue reading ग़ज़ल – मुसव्विर सब्ज़वारी
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ होता … Continue reading देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ – निदा फ़ाज़ली
एक क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत फिर जहाँ मैने संजो कर और भी सब रखी हैं ज्योति शिखायें … Continue reading सर्जना के क्षण – अज्ञेय
काँच के पीछे चाँद भी था काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे … Continue reading काँच के पीछे चाँद भी था – गुलज़ार
जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य … Continue reading एक आशीर्वाद – दुष्यंत कुमार
लम्हे दिन की गठरी खोल समेट रही हूँ होले होले गिरते लम्हे बूँदों-से छलककर टपकते लम्हे पत्तों-से गिरते, उठते लम्हे … Continue reading लम्हे- नेहल
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता दाग़ देहलवी काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है … Continue reading ग़ज़ल – दाग़ देहलवी
दिल के काबे में नमाज़ पढ़ दिल के काबे में नमाज़ पढ़, यहां-वहां भरमाना छोड़। सांस-सांस तेरी अज़ान है, सुबह … Continue reading दिल के काबे में नमाज़ पढ़ – नीरज
कभी यूँ ही अकेले बैठना अच्छा लगता है। चुपचाप से; अपने-आप से भी खामोश रहना, अच्छा लगता है। मन की … Continue reading अच्छा लगता है- नेहल
આ અદ્ભુત રચના પસંદ કરવાનો હેતુ એમાં થયેલો સૂફી પરંપરા, ભક્તિ માર્ગ અને અદ્વૈતનો સુભગ સંગમ છે. પરમ તત્ત્વ અહીં … Continue reading अमीर खुसरो – Amir Khusrau(1253-1325)
औरत उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे कल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-ज़ंग हैं आज हौसले वक़्त के और … Continue reading औरत : कैफ़ी आज़मी
मुरली बजत अखंड सदा से, तहाँ प्रेम झनकारा है। प्रेम-हद तजी जब भाई, सत लोक की हद पुनि आई। उठत … Continue reading कबीर बानी-Poems of Kabir
सदियों की गठरी सर पर ले जाती है दुनिया बच्ची बन कर वापस आती है मैं दुनिया की हद से … Continue reading मुसाफ़िर – बशीर बद्र
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ … Continue reading ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है नोक-ए-ख़ंजर ही बताएगी कि ख़ूँ कितना है आँधियाँ आईं तो सब लोगों … Continue reading दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है
नज़्म ( zen poem ) पीली पत्तीओं के रास्तो से हो कर पहुंचे हैं; उन मौसमो के मकाम पर, जहां … Continue reading नज़्म – नेहल
ख़लाओं में तैरते जज़ीरों पे चम्पई धूप देख कैसे बरस रही है महीन कोहरा सिमट रहा है हथेलियों में अभी … Continue reading नज़्म – गुलज़ार
ये ज़मीं जिस कदर सजाई गई ये ज़मीं जिस कदर सजाई गई जिंदगी की तड़प बढ़ाई गई आईने से बिगड़ … Continue reading ये ज़मीं जिस कदर सजाई गई
ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा रात भर तारे बातें करते … Continue reading ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा -गुलज़ार
अब तक सब कुछ याद है! सफेद कुर्ते पर नीला पश्मीना ओढे तुमने जब खिडकी से बरामदे में झाँका … Continue reading इक सबसे छोटी लव-स्टोरी! – नेहल
बूंदे धूँधले शीशों पर सरकती बूंदे। बारिष के रुकने पर पेडोंके पत्तो से बरसती बूंदे। कभी सोने सी; कभी हीरे … Continue reading बूंदे – नेहल
I simply love this poem for its simplicity of words and high philosophy behind this! Very few writers can achieve … Continue reading हम्द – निदा फ़ाज़ली
ज़िन्दगी की सच्चाइयों को खूबसूरती से पेश करनेवाले निदा फ़ाज़ली मेरी नज़र में उजालों के , उम्मीदों के शायर है … Continue reading निदा फ़ाज़ली – चुनिंदा अशआर
वेद न कुरान बांचे, ली न ज्ञान की दीक्षा सीखी नहीं भाषा कोई, दी नहीं परीक्षा, दर्द रहा शिक्षक अपना, … Continue reading हम पत्ते तूफ़ान के – नीरज
चुप सी बरसातसे भीगी रातों में जब पत्ते भी अपनी सरसराहट से चौंकते है विंडचाइम अपने मन की धुन बजाता … Continue reading तुम्हारे इन्तिज़ार में – नेहल
ख़्वाब मरते नहीं ख़्वाब मरते नहीं ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसे कि जो रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जाएँगे … Continue reading अहमद फ़राज़ – ख़्वाब मरते नहीं
चुनिंदा अशआर शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है मेरे अन्दर बारिश होती रहती है। …. मैं चुप रहा तो सारा … Continue reading अहमद फ़राज़ – चुनिंदा अशआर
A Poem Perched On a Moment A poem perched on a moment Imprisoned in a butterfly net Then its wings … Continue reading Neglected Poems – Gulzar
ग़ज़ल मैं ढूँढता हूँ जिसे वह जहाँ नहीं मिलता नयी ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता नयी ज़मीन नया आसमाँ भी … Continue reading ग़ज़ल – Ghazal – कैफ़ी आज़मी
कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता … Continue reading कौन तुम मेरे हृदय में
आँखों में जल रहा है ये बुझता नहीं धुआँ उठता तो है घटा सा, बरसता नहीं धुआँ पलकों के ढापने … Continue reading धुआँ- गुलज़ार
मै अनंत पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बाते उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें! उड़् … Continue reading मैं अनंत पथ में लिखती जो
कबीर बानी सन्तो, सहज समाधि भली। साँईते मिलन भयो जा दिन तें, सुरत न अन्त चली।। आँख न मूँदूँ … Continue reading Poems of Kabir- कबीर बानी
क्या तुम जानते हो पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत घर-प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी … Continue reading क्या तुम जानते हो?!
આવીશ? સવારનો સમય છે: બફારો છે અને તડકામાં એક પ્રતીતિકર ચમક પણ. વનસ્પતિનો હરિયાળો રંગ પણ ઠંડક વિનાનો લાગે છે. … Continue reading આવીશ?
पिछली रातों में जब ठंडी हवाएँ चलती है, अकेलेपन की! तब आके लिपट जाती है, नरम गर्म कम्बलों सी तुम्हारी … Continue reading तुम्हारी याद! -नेहल
ऐश ट्रे इलहाम के धुएँ से लेकर सिगरेट की राख तक उम्र की सूरज ढले माथे की सोच बले एक … Continue reading ઍશ-ટ્રે – અમૃતા પ્રીતમ ऐश ट्रे – अमृता प्रीतम
बातें आ साजन, आज बातें कर लें… तेरे दिल के बाग़ों में हरी चाह की पत्ती-जैसी जो बात जब भी … Continue reading बातें – વાતો – અમૃતા પ્રીતમ – પ્રતિનિધિ કવિતા અનુવાદ : જયા મહેતા
हम भी दरया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ……….. जिस दिन … Continue reading कुछ चुनिंदा अशआर- बशीर बद्र (2)
Trying something new, something different! I hope you will like it! गिले-शिकवे की हवाओंमें है नमी, दिलका मौसम … Continue reading My words my sketch -नेहल
मीर तक़ी मीर (1722-23 – 1810) उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर जिन्हें ‘ ख़ुदा-ए-सुख़न, (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता … Continue reading मीर तक़ी मीर
चांद और सितारे डरते-डरते दमे-सहर से तारे कह्ने लगे क़मर से नज़ारे रहे वही फ़लक पर हम थक भी गये … Continue reading चांद और सितारे – इकबाल – The Moon and The Stars
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है सड़कें – बेतुकी दलीलों-सी… और गलियाँ इस तरह जैसे एक बात … Continue reading शहर -अमृता प्रीतम – चुनी हुई कवितायें
તારા પ્રેમનું એક ટીપું એમાં ભળી ગયું હતું તેથી મેં જિંદગીની બધી કડવાશ પી લીધી…. . . . . . … Continue reading મારું સરનામું – અમૃતા પ્રીતમ, मेरा पता – अमृता प्रीतम
जो छोड़ आये है पीछे ; वोह गलियाँ वोह मकान वोह दीवारें वोह दरीचे अपनी शक़्ल भूल चुके हैं ! … Continue reading घरौंदे -नेहल
दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ। भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी … Continue reading कुछ ख़याल कुछ लब़्ज़ – नेहल
मुलाक़ात यह रात उस दर्द का शजर है जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है अज़ीमतर है कि उसकी शाख़ों में लाख … Continue reading फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी
उतार लिए जब से सारे आईने अपने अंदर , सूरत अपनी कहीं नज़र आती नहीं | -नेहल Continue reading आईने – नेहल
थक चुके इस प्यास की सिलवटें गिनते गिनते आओ इन सिलवटों के समंदर में डूब जाते हैं… शायद ये इश्क … Continue reading इश्क – नेहल
ऐसे आई है तेरी याद अचानक जैसे पगडंडी कोई पेड़ों से निकले इक घने माज़ी के जंगल में … Continue reading रात पश्मीने की – गुलज़ार
आज बादल जम कर बरसे, ज़मींको अपनी नमीं से भर दिया। अपने सारे ख्वाब ज़मींकी छातिमें उडेल दिये। अब धरती … Continue reading वसंत के ख्वाब – नेहल
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए । – … Continue reading चुनिंदा अशआर- बशीर बद्र (1)
रातके माथे पर जो बल पडे है, चाँदके सफ़रका बयाँ है। उजालोंके सूरज तो निकले है कबसे, ये कौनसा चिलमन … Continue reading रात – नेहल
बरतर अज़ अंदेशा-ए-सूदो-ज़ियां है ज़िंदगी है कभी जां और कभी तस्लीमे-जां है ज़िंदगी । तू इसे पैमाना-ए-इमरोज़ो-फ़रदा से न नाप … Continue reading ज़िंदगी – मोहम्मद इक़बाल
कल रात जब मैने बिना नींद के पथराइ आँखोसे देखा । आधा अधूरासा चाँद खिला था मैले धूंधले आसमाँ के … Continue reading सुकून – नेहल
My friends, today I want to share works of my favorite poet Kabir. The unique thing about this post … Continue reading Poems by KABIR [1440-1518]
एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये, ना उसने कुछ पूछा , ना हम बयां करने … Continue reading एक अलग अंदाज़…. – नेहल