मीर तक़ी मीर (1722-23 – 1810)
उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर जिन्हें ‘ ख़ुदा-ए-सुख़न, (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है।
कुछ अशआर
दिल से रुख़सत हुई कोई ख़्वाहिश
गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता
गिर्या- weeping, lamentation
हम ख़ुदा के कभी क़ाइल ही न थे
उन को देखा तो ख़ुदा याद आया
क़ाइल- convince, acknowledge
हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है
हबाब- bubble
उसके फ़रोग-ए-हुस्न से झमके है सब में नूर
शम-ए-हरम हो या हो दिया सोमनात का
फ़रोग-ए-हुस्न- splendour of beauty, शम-ए-हरम- light of Kaabaa
रु-ए-सुखन है कीधर अहल-ए-जहाँ का या रब
सब मुत्तफ़िफ़ हैं इस पर हर एक का ख़ुदा है
रु-ए-सुखन= face of poetry, अहल-ए-जहाँ= people of the world, मुत्तफ़िफ़ =agreeing, united
‘मीर’ बंदों से काम कब नीकला
माँगना है जो कुछ ख़ुदा से माँग
‘मीर’ साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
ये जो मोहलत जिसे कहे हैं उम्र
देखो तो इंतिज़ार सा है कुछ
सरापा आरज़ू होने ने बंदा कर दिया मुझ को
वगरना हम ख़ुदा थे गर दिल-ए-बे-मुद्दआ होते
सरापा= human figure from head to foot, दिल-ए-बे-मुद्दआ= a heart without desire, वगरना= otherwise
बे-खुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतिज़ार है अपना
मुझ को शायर न कहो मीर कि साहब मैं ने
दर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया
तुझी पर कुछ ए बुत नहीं मुनहसिर
जिसे हम ने पूजा ख़ुदा कर दिया
मुनहसिर= dependent on,resting on
परस्तिश की याँ तक कि ए बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले
परस्तिश= worshiped,बुत= idol
ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत काम
आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का
आफ़ाक़= the world , कारगह-ए-शीशागरी=workshop of glass-making