
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ … Continue reading ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ … Continue reading ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
चांद और सितारे डरते-डरते दमे-सहर से तारे कह्ने लगे क़मर से नज़ारे रहे वही फ़लक पर हम थक भी गये … Continue reading चांद और सितारे – इकबाल – The Moon and The Stars
बरतर अज़ अंदेशा-ए-सूदो-ज़ियां है ज़िंदगी है कभी जां और कभी तस्लीमे-जां है ज़िंदगी । तू इसे पैमाना-ए-इमरोज़ो-फ़रदा से न नाप … Continue reading ज़िंदगी – मोहम्मद इक़बाल