स्वस्तिक क्षण
नृत्य की मुद्रा में कसा हुआ
लगता जीवन!
आँगन में पड़ी हुई पायल-सी धूप!
छूम छनन छन!
घुँघरूओं की तरह बज उठता है
कभी-कभी मन!
हवा में कलाइयाँ लहरती हैं
कान में खनकते कंगन!
चंदन में बसे हुए पाए हैं
ये स्वस्तिक क्षण!
~ दुष्यन्त कुमार ('जलते हुए वन का वसन्त')