मेरा शहर : नेहल

मेरा शहर : नेहल

मेरा शहर ख़ाक से उठ रहा हैउसकी हांफती हुई सांसों सेख़ाक उड रही हैपूरा आसमान ढक लिया हैन अंधेरा न … Continue reading मेरा शहर : नेहल

कौन सी है ये गली : नेहल

कौन सी है ये गली : नेहल

उदासी के काले, धूंधले, ठंडे थपेडों के बीच ये कौन सा सफ़र बीत रहा है? एक संकरी गली से गुज़र … Continue reading कौन सी है ये गली : नेहल

सह अस्तित्व – नेहल

सह अस्तित्व – नेहल

हजारों कन्सट्रकशन वर्क के रजकणसेघूंटा हुआ हवा का दम छूटा और ली राहत की साँसबेवजह इधर-उधर दौडते रहते पहियों केधुंए … Continue reading सह अस्तित्व – नेहल

अश्मीभूत हो रहे भस्मासूर हम – नेहल

अश्मीभूत हो रहे भस्मासूर हम – नेहल

बहते हुए काल की गर्तामें अश्मीभूत हो रहे हम! कुछ सदिओं की धरोहर परंपराओं से आज को मूल्यांकित करने में … Continue reading अश्मीभूत हो रहे भस्मासूर हम – नेहल

पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल,  लम्हे !

पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल, लम्हे !

ब्लोग जगत के मेरे मित्रों, पाँचवी सालगिरह का ज़श्न मनाते हुए आज मेरी आप लोगों के द्वारा सबसे ज़्यादा पढी … Continue reading पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल, लम्हे !

ख़्वाब – नेहल

ख़्वाब – नेहल

जब पलकों से कोई ख़्वाब गिरता है तो नींद भी मचल जाती है उसके पीछे दौड़ जाती है आँखों को … Continue reading ख़्वाब – नेहल

सफ़र – नेहल

सफ़र – नेहल

हरे दरख़्तो के चम्पई अंधेरोमें शाम के साये जब उतरते है रात की कहानी छेड देते है जुग्नूओं की महफ़िलमें। … Continue reading सफ़र – नेहल

सूर्य ग्रहन- नेहल

सूर्य ग्रहन- नेहल

  मेरे भीतर से उठ रहा है ख़लाओं का काला चाँद ढक रहा है मेरे सूरज को धीरे धीरे रंगों … Continue reading सूर्य ग्रहन- नेहल

लम्हे- नेहल

लम्हे दिन की गठरी खोल समेट रही हूँ होले होले गिरते लम्हे बूँदों-से छलककर  टपकते लम्हे पत्तों-से गिरते, उठते लम्हे … Continue reading लम्हे- नेहल

अच्छा लगता है-  नेहल

अच्छा लगता है- नेहल

कभी यूँ ही अकेले बैठना अच्छा लगता है। चुपचाप से; अपने-आप से भी खामोश रहना, अच्छा लगता है। मन की … Continue reading अच्छा लगता है- नेहल

इक सबसे छोटी लव-स्टोरी! – नेहल

  अब तक सब कुछ याद है! सफेद कुर्ते पर नीला पश्मीना ओढे तुमने जब खिडकी से बरामदे में झाँका … Continue reading इक सबसे छोटी लव-स्टोरी! – नेहल

बूंदे – नेहल

  बूंदे धूँधले शीशों पर सरकती बूंदे। बारिष के रुकने पर पेडोंके पत्तो से बरसती बूंदे। कभी सोने सी; कभी हीरे … Continue reading बूंदे – नेहल

तुम्हारे इन्तिज़ार में – नेहल

​चुप सी बरसातसे भीगी  रातों में  जब  पत्ते भी अपनी सरसराहट से चौंकते है विंडचाइम अपने मन की धुन बजाता … Continue reading तुम्हारे इन्तिज़ार में – नेहल

तुम्हारी याद! -नेहल

पिछली रातों में जब ठंडी हवाएँ चलती है, अकेलेपन की! तब आके लिपट जाती है, नरम गर्म कम्बलों सी तुम्हारी … Continue reading तुम्हारी याद! -नेहल

कुछ ख़याल कुछ लब़्ज़ – नेहल

    दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ। भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी … Continue reading कुछ ख़याल कुछ लब़्ज़ – नेहल

इश्क – नेहल

थक चुके इस प्यास की सिलवटें गिनते गिनते आओ इन सिलवटों के समंदर में डूब जाते हैं… शायद ये इश्क … Continue reading इश्क – नेहल

वसंत के ख्वाब – नेहल

आज बादल जम कर बरसे, ज़मींको अपनी नमीं से भर दिया। अपने सारे ख्वाब ज़मींकी छातिमें उडेल दिये। अब धरती … Continue reading वसंत के ख्वाब – नेहल

रात – नेहल

रात – नेहल

रातके माथे पर जो बल पडे है, चाँदके सफ़रका बयाँ है। उजालोंके सूरज तो निकले है कबसे, ये कौनसा चिलमन … Continue reading रात – नेहल

सुकून – नेहल

कल रात जब मैने बिना नींद के पथराइ आँखोसे देखा । आधा अधूरासा चाँद खिला था मैले धूंधले आसमाँ के … Continue reading सुकून – नेहल

एक अलग अंदाज़…. – नेहल

  एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये, ना उसने कुछ पूछा ,  ना हम बयां  करने … Continue reading एक अलग अंदाज़…. – नेहल