उषा प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ; राख से लीपा हुआ चौका; अभी गीला पड़ा है बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल…
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Growing Time…in Words!
उषा प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ; राख से लीपा हुआ चौका; अभी गीला पड़ा है बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल…
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