अपने गिर्द-ओ-पेश का भी कुछ पता रख दिल की दुनिया तो मगर सब से जुदा रख लिख बयाज़-ए-मर्ग में हर जा अनल-हक़ और किताब-ए-ज़ीस्त में बाब-ए-ख़ुदा रख उस की रंगत और निखरेगी ख़िज़ाँ में ये ग़मों की शाख़ है इस को हरा रख आ ही जाएगी उदासी बाल खोले आज अपने दिल का दरवाज़ा खुला…
Read More