
रात और चराग़ के दरमियान :मुनीर मोमिन
गलियाँ भाग-भाग कर थक गईं और अपने पाँव के छाले मेरी आँखों में रख दिए मेरा अपना ख़्वाब हथेली में … Continue reading रात और चराग़ के दरमियान :मुनीर मोमिन
गलियाँ भाग-भाग कर थक गईं और अपने पाँव के छाले मेरी आँखों में रख दिए मेरा अपना ख़्वाब हथेली में … Continue reading रात और चराग़ के दरमियान :मुनीर मोमिन
शाम का जादू हर सुब्ह जब मैं जागता हूँ मुझे शाम की ख़्वाहिश बेचैन करने लगती है और मैं काग़ज़ … Continue reading आजकी पंक्तियाँ : मुनीर मोमिन
उर्दू से लिप्यंतरण : मुमताज़ इक़बाल मुनीर मोमिन सुपरिचित, सम्मानित और समकालीन बलोची कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत बलोची नज़्में उनके … Continue reading आज की पंक्तियाँ:मुनीर मोमिन: ख़्वाब
Originally posted on Borderless:
Poetry of Munir Momin, translated from Balochi by Fazal Baloch Munir Momin is a contemporary Balochi… Continue reading The Beloved City: Munir Momin
लफ़्ज़… मरजान मैं नहीं जानता ये शहर ख़ुद को क्यों मेरे अंदर के गलियारों में गुम कर देना चाहता है … Continue reading लफ़्ज़… मरजान : मुनीर मोमिन