Category: Gulzar गुलज़ार

नज़्म : गुलज़ार
मैं जितनी भी ज़बानें बोल सकता हूँ वो सारी आज़माई हैं… ‘ख़ुदा’ ने एक भी समझी नहीं अब तक, न … Continue reading नज़्म : गुलज़ार

जश़्ने सुख़नगोई, ब्लोग के पाँचवे जन्मदिन पर…
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो ( मेयारी – qualitative) … Continue reading जश़्ने सुख़नगोई, ब्लोग के पाँचवे जन्मदिन पर…
Sunshine – Gulzar
Sunshine A golden sun shines on floating islands in the cosmos. The rarefied mist has slipped aside. Your face quivers … Continue reading Sunshine – Gulzar
Amen- कुछ और नज़्में
Amen Give everything away— Ideas, breath, vision, thoughts. Peel off words from the lips, and sounds from the tongue. Wipe … Continue reading Amen- कुछ और नज़्में
रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है…
रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… आस्मान बुझता ही नहीं, … Continue reading रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है…
काँच के पीछे चाँद भी था – गुलज़ार
काँच के पीछे चाँद भी था काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे … Continue reading काँच के पीछे चाँद भी था – गुलज़ार
नज़्म – गुलज़ार
ख़लाओं में तैरते जज़ीरों पे चम्पई धूप देख कैसे बरस रही है महीन कोहरा सिमट रहा है हथेलियों में अभी … Continue reading नज़्म – गुलज़ार
ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा -गुलज़ार
ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा रात भर तारे बातें करते … Continue reading ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा -गुलज़ार
Neglected Poems – Gulzar
A Poem Perched On a Moment A poem perched on a moment Imprisoned in a butterfly net Then its wings … Continue reading Neglected Poems – Gulzar
धुआँ- गुलज़ार
आँखों में जल रहा है ये बुझता नहीं धुआँ उठता तो है घटा सा, बरसता नहीं धुआँ पलकों के ढापने … Continue reading धुआँ- गुलज़ार

रात पश्मीने की – गुलज़ार
ऐसे आई है तेरी याद अचानक जैसे पगडंडी कोई पेड़ों से निकले इक घने माज़ी के जंगल में … Continue reading रात पश्मीने की – गुलज़ार