कुछ चुनी हुई पंक्तिआँ कुछ देर और बैठो अभी तो रोशनी की सिलवटें हैं हमारे बीच। उन्हें हट तो जाने दो – शब्दों के इन जलते कोयलों पर गिरने तो दो समिधा की तरह मेरी एकांत समर्पित खामोशी! ….. सारा अस्तित्व रेल की पटरी-सा बिछा है हर क्षण धड़धड़ाता हुआ निकल जाता है। ….. जलहीन,सूखी,पथरीली,…
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