
स्वस्तिक क्षण : दुष्यन्त कुमार
स्वस्तिक क्षण नृत्य की मुद्रा में कसा हुआ लगता जीवन! आँगन में पड़ी हुई पायल-सी धूप! छूम छनन छन! घुँघरूओं … Continue reading स्वस्तिक क्षण : दुष्यन्त कुमार
स्वस्तिक क्षण नृत्य की मुद्रा में कसा हुआ लगता जीवन! आँगन में पड़ी हुई पायल-सी धूप! छूम छनन छन! घुँघरूओं … Continue reading स्वस्तिक क्षण : दुष्यन्त कुमार
कुंठा मेरी कुंठारेशम के कीड़ों-सीताने-बाने बुनती,तड़प तड़पकरबाहर आने को सिर धुनती,स्वर सेशब्दों सेभावों सेऔ’ वीणा से कहती-सुनती,गर्भवती हैमेरी कुंठा–कुँवारी कुंती! … Continue reading कुंठा : दुष्यन्त कुमार
गांधीजी के जन्मदिन पर मैं फिर जनम लूंगाफिर मैंइसी जगह आउंगाउचटती निगाहों की भीड़ मेंअभावों के बीचलोगों की क्षत-विक्षत पीठ … Continue reading गांधीजी के जन्मदिन पर : दुष्यन्त कुमार
अभिव्यक्ति का प्रश्न प्रश्न अभिव्यक्ति का है, मित्र! किसी मर्मस्पर्शी शब्द से या क्रिया से, मेरे भावों, अभावों को भेदो … Continue reading अभिव्यक्ति का प्रश्न – दुष्यंत कुमार ( સરળ ગુજરાતી સાર સાથે )
कुछ चुनिंदा अशआर : सिर्फ़ शाइ’र देखता है क़हक़हों की असलियत हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं … Continue reading ग़ज़ल – दुष्यंत कुमार
जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य … Continue reading एक आशीर्वाद – दुष्यंत कुमार