
कौन सी है ये गली : नेहल
उदासी के काले, धूंधले, ठंडे थपेडों के बीच ये कौन सा सफ़र बीत रहा है? एक संकरी गली से गुज़र … Continue reading कौन सी है ये गली : नेहल
उदासी के काले, धूंधले, ठंडे थपेडों के बीच ये कौन सा सफ़र बीत रहा है? एक संकरी गली से गुज़र … Continue reading कौन सी है ये गली : नेहल
हजारों कन्सट्रकशन वर्क के रजकणसेघूंटा हुआ हवा का दम छूटा और ली राहत की साँसबेवजह इधर-उधर दौडते रहते पहियों केधुंए … Continue reading सह अस्तित्व – नेहल
बहते हुए काल की गर्तामें अश्मीभूत हो रहे हम! कुछ सदिओं की धरोहर परंपराओं से आज को मूल्यांकित करने में … Continue reading अश्मीभूत हो रहे भस्मासूर हम – नेहल
ब्लोग जगत के मेरे मित्रों, पाँचवी सालगिरह का ज़श्न मनाते हुए आज मेरी आप लोगों के द्वारा सबसे ज़्यादा पढी … Continue reading पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल, लम्हे !
जब पलकों से कोई ख़्वाब गिरता है तो नींद भी मचल जाती है उसके पीछे दौड़ जाती है आँखों को … Continue reading ख़्वाब – नेहल
हरे दरख़्तो के चम्पई अंधेरोमें शाम के साये जब उतरते है रात की कहानी छेड देते है जुग्नूओं की महफ़िलमें। … Continue reading सफ़र – नेहल
मेरे भीतर से उठ रहा है ख़लाओं का काला चाँद ढक रहा है मेरे सूरज को धीरे धीरे रंगों … Continue reading सूर्य ग्रहन- नेहल
लम्हे दिन की गठरी खोल समेट रही हूँ होले होले गिरते लम्हे बूँदों-से छलककर टपकते लम्हे पत्तों-से गिरते, उठते लम्हे … Continue reading लम्हे- नेहल
कभी यूँ ही अकेले बैठना अच्छा लगता है। चुपचाप से; अपने-आप से भी खामोश रहना, अच्छा लगता है। मन की … Continue reading अच्छा लगता है- नेहल
नज़्म ( zen poem ) पीली पत्तीओं के रास्तो से हो कर पहुंचे हैं; उन मौसमो के मकाम पर, जहां … Continue reading नज़्म – नेहल
अब तक सब कुछ याद है! सफेद कुर्ते पर नीला पश्मीना ओढे तुमने जब खिडकी से बरामदे में झाँका … Continue reading इक सबसे छोटी लव-स्टोरी! – नेहल
बूंदे धूँधले शीशों पर सरकती बूंदे। बारिष के रुकने पर पेडोंके पत्तो से बरसती बूंदे। कभी सोने सी; कभी हीरे … Continue reading बूंदे – नेहल
चुप सी बरसातसे भीगी रातों में जब पत्ते भी अपनी सरसराहट से चौंकते है विंडचाइम अपने मन की धुन बजाता … Continue reading तुम्हारे इन्तिज़ार में – नेहल
पिछली रातों में जब ठंडी हवाएँ चलती है, अकेलेपन की! तब आके लिपट जाती है, नरम गर्म कम्बलों सी तुम्हारी … Continue reading तुम्हारी याद! -नेहल
Trying something new, something different! I hope you will like it! गिले-शिकवे की हवाओंमें है नमी, दिलका मौसम … Continue reading My words my sketch -नेहल
जो छोड़ आये है पीछे ; वोह गलियाँ वोह मकान वोह दीवारें वोह दरीचे अपनी शक़्ल भूल चुके हैं ! … Continue reading घरौंदे -नेहल
दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ। भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी … Continue reading कुछ ख़याल कुछ लब़्ज़ – नेहल
उतार लिए जब से सारे आईने अपने अंदर , सूरत अपनी कहीं नज़र आती नहीं | -नेहल Continue reading आईने – नेहल
थक चुके इस प्यास की सिलवटें गिनते गिनते आओ इन सिलवटों के समंदर में डूब जाते हैं… शायद ये इश्क … Continue reading इश्क – नेहल
आज बादल जम कर बरसे, ज़मींको अपनी नमीं से भर दिया। अपने सारे ख्वाब ज़मींकी छातिमें उडेल दिये। अब धरती … Continue reading वसंत के ख्वाब – नेहल
रातके माथे पर जो बल पडे है, चाँदके सफ़रका बयाँ है। उजालोंके सूरज तो निकले है कबसे, ये कौनसा चिलमन … Continue reading रात – नेहल
कल रात जब मैने बिना नींद के पथराइ आँखोसे देखा । आधा अधूरासा चाँद खिला था मैले धूंधले आसमाँ के … Continue reading सुकून – नेहल
एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये, ना उसने कुछ पूछा , ना हम बयां करने … Continue reading एक अलग अंदाज़…. – नेहल