मन मस्त हुआ तब क्यों बोले। हीरा पायो गाँठ गठियायो, बार बार वाको क्यों खोले। हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोले। सुरत-कलारी भई मतवारी, मदवा पी गई बिन तोले।। हंसा पाये मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोले। तेरा साहब है घर माहीं, बाहर नैना क्यों खोले। कहैं कबीर सुनो भाई साधो, साहब…
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