उषा प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ; राख से लीपा हुआ चौका; अभी गीला पड़ा है बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल…
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उषा प्रात: नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ; राख से लीपा हुआ चौका; अभी गीला पड़ा है बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल…
Read Moreअफ़्साना-ए-हस्ती = story of life तर्ज़-ए-अदा = style of saying
Read Moreसम्त = Direction, path.
Read Moreजे़हनों में ख़याल जल रहे हैं जे़हनों में ख़याल जल रहे हैंसोचों के अलाव-से लगे हैं अलाव = bonfire दुनिया की गिरिफ्त में हैं साये,हम अपना वुजूद ढूंढते हैं अब भूख से कोई क्या मरेगा,मंडी में ज़मीर बिक रहे हैं माज़ी में तो सिर्फ़ दिल दुखते थे,इस दौर में ज़ेहन भी दुखे हैं ज़ेहन =…
Read MoreTranslation : तुख़्म = seed सर्व-ए-चराग़ाँ = graceful display of lamps, चराग़ों से जगमगाता हुआ पेड़ if time permits, (if Time will give me freedom) I will show (them this) amusement My each heart sore is a seed of a tree, illuminated with lamps. meanings, source : rekhta.org
Read More*मुनव्वर = प्रकाशमान Translation : There is light everywhere ( I see ) Who is the luminous ( beaming with light ) one in my eyes (?)
Read MoreSimple Translation : ( I saw ) My soul (my life ) melting in each moment Spent night drop by drop ( crying, in grief ) My hands shaking, quivering ( But) ( I came out of all this) on my own, I took control of myself. ~ Kishwar Naheed Translation : Nehal.
Read Moreजिसे लिखता है सूरज वो आयी! और उसने मुस्कुरा के मेरी बढ़ती उम्र के सारे पुराने जाने अनजाने बरस पहले हवाओं में उड़ाये और फिर मेरी ज़बाँ के सारे लफ़्जों को ग़ज़ल को गीत को दोहों को नज़्मों को खुली खिड़की से बाहर फेंक कर यूँ खिलखिलाई क़लम ने मेज़ पर लेटे ही लेटे आँख…
Read MoreMiddle Class Blues We can’t complain.We’re not out of work.We don’t go hungry.We eat.The grass grows,the social product,the fingernail,the past.The streets are empty.The deals are closed.The sirens are silent.All that will pass.The dead have made their wills.The rain’s become a drizzle.The war’s not yet been declared.There’s no hurry for that.We eat the grass.We eat the…
Read Moreएक पुराने परिचित चेहरे परन टूटने की पुरानी चाह थीआँखें बेधक तनी हुई नाकछिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कानदूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी कोव्यापार की दुनिया में वह आदमी प्यार का इंतज़ार करता था मैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढ़ी को छुआउसे थोड़ा-सा क्या किया नहीं जा सकता था कालाआँखें…
Read MoreEverything Is Going To Be All Right How should I not be glad to contemplate the clouds clearing beyond the dormer window and a high tide reflected on the ceiling? There will be dying, there will be dying, but there is no need to go into that. The lines flow from the hand unbidden and…
Read Moreश्रोता कविता-पाठ करते वक़्तमेरे गले मेंअचानक से प्यास उठती है। डूब जाती है आवाज़जैसे गिर पड़ी होनदी के ऊपर से उड़ रहे किसी पक्षी केमुँह में पकड़े हुए शिकार-सी। मैं पेश करती हूँ कुछ कविताएँसिवाय उसके! मेरी वह एक प्रिय कविताजो मर रही होती है उस नदी में। कविता श्रवण के लिए बैठे हुए चेहरेजब…
Read Moreगांधीजी के जन्मदिन पर मैं फिर जनम लूंगाफिर मैंइसी जगह आउंगाउचटती निगाहों की भीड़ मेंअभावों के बीचलोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगालँगड़ाकर चलते हुए पावों कोकंधा दूँगागिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता कोबाँहों में उठाऊँगा । इस समूह मेंइन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों मेंकैसा दर्द हैकोई नहीं सुनता !पर इन आवाजों कोऔर इन कराहों कोदुनिया सुने मैं ये…
Read Moreसाबुत आईने इस डगर पर मोह सारे तोड़ले चुका कितने अपरिचित मोड़ पर मुझे लगता रहा हर बारकर रहा हूँ आइनों को पार दर्पणों में चल रहा हूँ मैंचौखटों को छल रहा हूँ मैं सामने लेकिन मिली हर बारफिर वही दर्पण मढ़ी दीवार फिर वही झूठे झरोखे द्वारवही मंगल चिन्ह वन्दनवार किन्तु अंकित भीत पर,…
Read Moreमैं जितनी भी ज़बानें बोल सकता हूँ वो सारी आज़माई हैं… ‘ख़ुदा’ ने एक भी समझी नहीं अब तक, न वो गर्दन हिलाता है, न वो हंकारा ही देता है! कुछ ऐसा सोच कर— शायद फ़रिश्तों ही से पढ़वा ले, कभी मैं चाँद की तख़्ती पे लिख देता हूँ, कोई शेर ‘ग़ालिब’ का तो धो…
Read Moreगीत मेरे गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन। एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन,गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन। प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ,और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,कह उठे संसार, आया ज्योति का क्षण,गीत मेरे, देहरी का…
Read Moreबारिश दिन ढले कीहरियाली-भीगी, बेबस, गुमसुमतुम हो और,और वही बलखाई मुद्राकोमल शंखवाले गले कीवही झुकी-मुँदी पलक सीपी में खाता हुआ पछाड़बेज़बान समन्दर अन्दरएक टूटा जलयानथकी लहरों से पूछता है पतादूर- पीछे छूटे प्रवालद्वीप का बांधूंगा नहींसिर्फ़ काँपती उंगलियों से छू लूँ तुम्हेंजाने कौन लहरें ले आई हैंजाने कौन लहरें वापिस बहा ले जाएंगी मेरी इस…
Read Moreआरम्भ में केवल शब्द थाकिन्तु उसकी सार्थकता थी श्रुति बनने मेंकि वह किसी से कहा जाय मौन को टूटना अनिवार्य थाशब्द का कहा जाना थाताकि प्रलय का अराजक तिमिर व्यवस्थित उजियाले में रूपान्तरित हो ताकि रेगिस्तानगुलाबों की क्यारी बन जाय शब्द का कहा जाना अनिवार्य था।आदम की पसलियों के घाव से इवा के मुक्त अस्तित्व की प्रतिष्ठा के लिएशब्द को…
Read Moreसफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना क़दम यक़ीन में मंज़िल गुमान में रखना जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन जो खो गया है उसे भी मकान में रखना जो देखती हैं निगाहें वही नहीं सब कुछ ये एहतियात भी अपने बयान में रखा वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता बना के चाँद…
Read More“अपनी जगह से गिर कर कहीं के नहीं रहते केश, औरतें और नाख़ून” – अन्वय करते थे किसी श्लोक को ऐसे हमारे संस्कृत टीचर। और मारे डर के जम जाती थीं हम लड़कियाँ अपनी जगह पर। जगह? जगह क्या होती है? यह वैसे जान लिया था हमने अपनी पहली कक्षा में ही। याद था हमें एक-एक क्षण आरंभिक पाठों का– राम, पाठशाला जा ! राधा, खाना पका ! राम,…
Read Moreसुबह पाँच बजे हाथ में थामे झाड़ू घर से निकल पड़ती है रामेसरी लोहे की हाथ गाड़ी धकेलते हुए खड़ाँग-खड़ाँग की कर्कश आवाज़ टकराती है शहर की उनींदी दीवारों से गुज़रती है सुनसान पड़े चौराहों से करती हुई ऐलान जागो! पूरब दिशा में लाल-लाल सूर्य उगने वाला है नगरपालिका की सुनसान सड़कें धुँधलकों की जमात…
Read Moreरैदास हमारौ राम जी, दशरथ करि सुत नाहिं। राम हमउ मांहि रहयो, बिसब कुटंबह माहिं॥ रैदास कहते हैं कि मेरे आराध्य राम दशरथ के पुत्र राम नहीं हैं। जो राम पूरे विश्व में, प्रत्येक घर−घर में समाया हुआ है, वही मेरे भीतर रमा हुआ है। * ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय। जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥ मात्र ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण ही कोई ब्राह्मण नहीं कहला सकता। जो ब्रहात्मा को जानता है, रैदास कहते हैं कि वही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी है। * रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार। मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार॥ रैदास कहते हैं कि यह सृष्टि एक ही बूँद का विस्तार है अर्थात् एक ही ईश्वर से सभी प्राणियों का विकास हुआ है; फिर भी जो लोग जात-कुजात का विचार अर्थात् जातिगत भेद−विचार करते हैं, वे नितांत मूर्ख हैं। * ब्राह्मण…
Read Moreमैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए * ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो मेयारी = qualitative * आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के *…
Read Moreयूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है चलता जाता है कारवान-ए-हयात इब्तिदा क्या है इंतिहा क्या है ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वर्ना अपने…
Read Moreजल तो बहुत गहरा थाकमलों तक समझे हम झील वह अछूती थीपुरइन से ढंकी हुईसूरज से अनबोलीचाँद से न खुली हुईकई जन्म अमर हुएकोरी अब सिर्फ देहपहली ही बिजलीहमें नौका-सी बाँध गई लहरें किन्तु भीतर थींरोओं तक समझे हम तट से बंधा मनछाया कृतियों में मग्न रहास्वप्न की हवाओं मेंतिरती हुयी गन्ध रहाअतल बीचसीपी का…
Read Moreउनको प्रणाम जो नहीं हो सके पूर्ण–काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम । कुछ कंठित औ’ कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए ! उनको प्रणाम ! जो छोटी–सी नैया लेकर उतरे करने को उदधि–पार; मन की मन में ही रही¸ स्वयं हो गए उसी में निराकार ! उनको प्रणाम ! जो उच्च शिखर…
Read Moreहजारों कन्सट्रकशन वर्क के रजकणसेघूंटा हुआ हवा का दम छूटा और ली राहत की साँसबेवजह इधर-उधर दौडते रहते पहियों केधुंए से चोक हुए गले को पवनने किया साफ़आह, आसमान आज लगे नहाया, साफ़, नीलाधूप चमक रही उजलीतृणांकुर अपना कोमल शीश उठाए देख रहे अजूबावातावरण में गूंजती पक्षियों की ऑर्केस्ट्रा परडोल रहे है पेड़प्रकृति मना रही…
Read Moreहमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा-ईम (हम हरियाली की तरह बार-बार उगे हैं) रूमी … फिर इक दिन ऐसा आएगा आँखों के दिये बुझ जाएँगे हाथों के कँवल कुम्हलाएँगे और बर्गे-ज़बाँ से नुत्क़ो-सदा की हर तितली उड़ जाएगी इक काले समन्दर की तह में कलियों की तरह से खिलती हुई फूलों की तरह से हँसती हुई सारी…
Read Moreकुछ चुनी हुई पंक्तिआँ कुछ देर और बैठो अभी तो रोशनी की सिलवटें हैं हमारे बीच। उन्हें हट तो जाने दो – शब्दों के इन जलते कोयलों पर गिरने तो दो समिधा की तरह मेरी एकांत समर्पित खामोशी! ….. सारा अस्तित्व रेल की पटरी-सा बिछा है हर क्षण धड़धड़ाता हुआ निकल जाता है। ….. जलहीन,सूखी,पथरीली,…
Read Moreतुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएँ पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर एक आँगन-सी बन गयी है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकान्त नहीं न बाहर, न भीतर। हर चीज़ का आकार घट गया है, पेड़ इतने छोटे हो गये हैं कि मैं…
Read Moreबहते हुए काल की गर्तामें अश्मीभूत हो रहे हम! कुछ सदिओं की धरोहर परंपराओं से आज को मूल्यांकित करने में मशरुफ़ सदिओं के अंघेरे कर रहे हैं अट्टहास्य हमारे महान, श्रेष्ठ होने के दावों पर। इस अकळ, गहन ब्रह्मांड के एक बिंदु मात्र जिसको सूर्य बनाने की जिदमें अहोनिश जलते-बुझते हम। बहेती, लुप्त हो रही…
Read Moreસરકતી જતી કાળની ગર્તામાં અશ્મીભૂત થતા આપણે થોડીક સદીઓની જણસને વળગી આજને મૂલવવાની રમતમાં ગળાડૂબ સદીઓ પારના અંધારા ખડખડ હસે છે આપણા મહાનતા, શ્રેષ્ઠતાના દાવાઑ પર. આ ગહન બ્રહ્માંડ નું એક ટપકું માત્ર એને ઘૂંટી ઘૂંટીને સૂર્ય બનાવવાની મથામણમાં ભડ ભડ બળતા, બૂઝતા આપણે. વહેતી, લુપ્ત થતી નદીઓ હતા, ન હતા થતા નગાધિરાજો તૂટતા-જોડાતા ભૂમિ…
Read Moreक्यूँ नूर-ए-अबद दिल में गुज़र कर नहीं पाता नूर-ए-अबद = eternal light सीने की सियाही से नया हर्फ़ लिखा है हर्फ़ = word .. .. .. .. ये पैरहन जो मिरी रूह का उतर न सका…
Read MoreTHE GRASS IS REALLY LIKE ME The grass is also like me it has to unfurl underfoot to fulfill itself but what does its wetness manifest: a scorching sense of shame or the heat of emotion? The grass is also like me As soon as it can raise its head the lawnmower obsessed with flattening…
Read Moreदरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़ मुझ को दिल की दिल को है मेरी अनानियत की आड़ आ गया तर्क-ए-ख़ुदी का गर कभी भूले से ध्यान दिल ने पैदा की हर एक जानिब से हर सूरत की आड़ देते हैं दिल के एवज़ वो दर्द बहर-ए-इम्तिहाँ लेते हैं नाम-ए-ख़ुदा अपनी तमानिय्यत की आड़ नफ़्स-परवर…
Read MoreThis particular Ghazal starts with the description of a beautiful beloved and in the last two Sher, there is mention of ongoing struggle for freedom; that is what I found very interesting. This Ghazal is beautifully written. …………………………………. रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम जमाल-ए-यार = beauty of the beloved…
Read Moreज़िन्दगी से उन्स है उन्स- प्रेम हुस्न से लगाव है धड़कनों में आज भी इश्क़ का अलाव है दिल अभी बुझा नहीं रंग भर रहा हूँ मैं ख़ाका ए-हयात में ख़ाका ए-हयात- जीवन चित्र आज भी हूँ मुन्हमिक मुन्हमिक- व्यस्त फ़िक्रे-कायनात में फ़िक्रे-कायनात-…
Read Moreब्लोग जगत के मेरे मित्रों, पाँचवी सालगिरह का ज़श्न मनाते हुए आज मेरी आप लोगों के द्वारा सबसे ज़्यादा पढी गई हिन्दी कविताएँ पेश कर रही हूँ। यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि हिन्दीमें लिखना ये ब्लोग के साथ ही शुरु हुआ है, उस माइनेमें आप मेरे हिन्दी लेखिनी की सर्जनात्मक…
Read Moreये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो ( मेयारी – qualitative) राहत इंदौरी …….. तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा तिरे सामने आसमाँ और भी हैं (शाहीं= eagle) अल्लामा इक़बाल ब्लोग जगत के मेरे मित्रों, अपने ब्लोग के पाँच साल पूरे होने की खुशी…
Read Moreअपने होंटों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ कोई आँसू तेरे दामन पर गिरा कर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ थक गया मैं करते करते याद तुझ को अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रौशनी को, घर जलाना चाहता हूँ आख़री हिचकी…
Read Moreमिलना न मिलना एक बहाना है और बस तुम सच हो बाक़ी जो है फ़साना है और बस लोगों को रास्ते की ज़रूरत है और मुझे इक संग-ए-रहगुज़र को हटाना है और बस संग-ए-रहगुज़र = stone on the way मसरूफ़ियत ज़ियादा नहीं है मिरी यहाँ मिट्टी…
Read Moreबिछड़ती और मिलती साअतों के दरमियान इक पल यही इक पल बचाने के लिए सब कुछ गँवाया है साअतों = times : : : साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला जाने क्या शय है जो बे-दख़्ल हुई है मुझ में …
Read Moreअभिव्यक्ति का प्रश्न प्रश्न अभिव्यक्ति का है, मित्र! किसी मर्मस्पर्शी शब्द से या क्रिया से, मेरे भावों, अभावों को भेदो प्रेरणा दो! यह जो नीला ज़हरीला घुँआ भीतर उठ रहा है, यह जो जैसे मेरी आत्मा का गला घुट रहा है, यह जो सद्य-जात शिशु सा कुछ छटपटा रहा है, यह क्या है? क्या है…
Read Moreकाश ऐसा होता कि ईश्वर मेरे बिस्तर के पास रखे पानी भरे गिलास के अन्दर से बैंगनी प्रकाश पुंज-सा अचानक प्रकट हो जाता… काश ऐसा होता कि ईश्वर शाम की अजान बन कर हमारे ललाट से दिन भर की थकान पोंछ देता… काश ऐसा होता कि ईश्वर आसूँ की एक बूंद बन जाता जिसके लुढ़कने…
Read Moreहलकी नीली यादें ओ विस्मृति के पहाड़ों में निर्वासित मेरे लोगो ! ओ मेरे रत्नों और जवाहरातो ! क्यों ख़ामोशी के कीचड़ में सोए हुए हो तुम ? ओ मेरे आवाम ! गुम हो चुकी हैं तुम्हारी यादें तुम्हारी हलकी नीली, वो आसमानी यादें । हमारे दिमागों में गाद भर चुकी है और विस्मरण के…
Read Moreहमारे ऊपर एक बार फिर जलती हैं कपोल-कथाएँ हवा के पहले झोंके में ही झर जाएँगी पत्तियों के साथ किन्तु अगली साँस के साथ वापस लौट आएगी एक नई झिलमिलाहट – उंगारेत्ती (8 फ़रवरी 1888- 2 जून 1970) अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल ……………….. Stars They come back high to burn the tales. They…
Read MoreEvery Song Every song is the remains of love. Every light the remains of time. A knot of time. And every sigh the remains of a cry. Federico García Lorca Translated by A. S. Kline © Copyright 2007 All Rights Reserved ……………….. हर गीत चुप्पी है प्रेम की हर तारा चुप्पी है समय की समय…
Read Moreजिनके अंदर चिराग़ जलते हैं, घर से बाहर वही निकलते हैं। बर्फ़ गिरती है जिन इलाकों में, धूप के कारोबार चलते हैं। दिन पहाड़ों की तरह कटते हैं, तब कहीं रास्ते पिघलते हैं। ऐसी काई है अब मकानों पर, धूप के पाँव भी फिसलते हैं। खुदरसी उम्र भर भटकती है, लोग इतने पते बदलते हैं।…
Read Moreजिनके नामों पे आज रस्ते हैं वे ही रस्तों की धूल थे पहले …… अन्नदाता हैं अब गुलाबों के जितने सूखे बबूल थे पहले …… मूरतें कुछ निकाल ही लाया पत्थरों तक अगर गया कोई ……. यहाँ रद्दी में बिक जाते हैं शाइर गगन ने छोड़ दी ऊँचाइयाँ हैं कथा हर ज़िंदगी की द्रोपदी-सी बड़ी…
Read Moreहैज़ा, टी. बी.,चेचक से मरती थी पहले दुनिया मन्दिर, मसजिद, नेता, कुरसी हैं ये रोग अभी के ….. इक मोम के चोले में धागे का सफ़र दुनिया, अपने ही गले लग कर रोने की सज़ा पानी। …….. हर लम्हा ज़िन्दगी के पसीने से तंग हूँ हर लम्हा ज़िन्दगी के पसीने से तंग हूँ मैं भी…
Read MoreWoodcutter. Cut out my shadow. Free me from the torture of seeing myself fruitless. Why was I born among mirrors? The daylight revolves around me. And the night herself repeats me in all her constellations. I want to live not seeing self. I shall dream the husks and insects change inside my dreaming into my…
Read Moreनए गीत तीसरा पहर कहता है- मैं छाया के लिए प्यासा हूँ चांद कहता है- मुझे तारों की प्यास है बिल्लौर की तरह साफ़ झरना होंठ मांगता है और हवा चाहती है आहें मैं प्यासा हूँ ख़ुशबू और हँसी का मैं प्यासा हूँ चन्द्रमाओं, कुमुदनियों और झुर्रीदार मुहब्बतों से मुक्त गीतों का कल का एक…
Read Moreकभी की जा चुकीं नीचे यहाँ की वेदनाएँ, नए स्वर के लिए तू क्या गगन को छानता है ? [1] बताएँ भेद क्या तारे ? उन्हें कुछ ज्ञात भी हो, कहे क्या चाँद ? उसके पास कोई बात भी हो। निशानी तो घटा पर है, मगर, किसके चरण की ? यहाँ पर भी नहीं यह…
Read Moreज़ात का आईना-ख़ाना जिस में रौशन इक चराग़-ए-आरज़ू चार-सू ज़ाफ़रानी रौशनी के दाएरे मुख़्तलिफ़ हैं आईनों के ज़ाविए एक लेकिन अक्स-ए-ज़ात; इक इकाई पर उसी की ज़र्ब से कसरत-ए-वहदत का पैदा है तिलिस्म ख़ल्वत-ए-आईना-ख़ाना में कहीं कोई नहीं सिर्फ़ मैं! मैं ही बुत और मैं ही बुत-परस्त! मैं ही बज़्म-ए-ज़ात में रौनक़-अफ़रोज़ जल्वा-हा-ए-ज़ात को देता…
Read Moreधरती ने मुझे सिखलाया है- सब कुछ स्वीकारना सब कुछ के बाद सबसे परे हो जाना हर ऋतु में बदलना यह जानते हुए कि स्थिरता मृत्यु है चलते चले जाना है अन्दर और बाहर। अग्नि ने मुझे सिखलाया है- तृष्णा में जलना नाचते-नाचते हो जाना राख दुख से होना तपस्वी काली चट्टानों के दिल और…
Read Moreकुआँ मैं एक कुआँ हूँ, गहरा कुआँ , मेरे अन्दर के अँधेरे में भी शांति है , शीतलता है ,… क्योंकि मैं जल से ओत प्रोत हूँ, जल… प्रेम का जल , अपनत्व का जल, ममता का जल, संस्कार का जल, श्रधा के समर्पण का जल, जल ही जल , चहुँ और मेरे जल ही…
Read MoreThose Bells Are Driving Me Crazy Those bells are driving me crazy How can I sleep? Ten times a day I pine for him I’ll wear the chains of his love Till death Standing at the edge They cry out, ‘My love!’ But they love only their lives Some claim, ‘I’m all yours’ But wet…
Read MoreDunya Mikhail was born in Iraq (Baghdad) in 1965 and came to the United States thirty years later. She’s renowned for her subversive, innovative, and satirical poetry. After graduation from the University of Baghdad, she worked as a journalist and translator for the Baghdad Observer. Facing censorship and interrogation, she left Iraq, first to Jordan…
Read Moreबग़दाद के अपने बग़ीचे में मैं अक्सर भागा करता था उसके पीछे मगर वह उड़कर दूर चली जाती थी हमेश। आज तीन दशकों बाद एक दूसरे महाद्वीप में वह आकर बैठ गई मेरे कन्धे पर। नीली समन्दर के ख़यालों या आख़िरी साँसें लेती किसी परी के आँसुओं की तर॥ उसके पर स्वर्ग से गिरती दो…
Read Moreमेरा एकांत मैं देता हूं तुम्हें एकांत— हंसी के जमघट के बीच एक अकेला अश्रु शब्दों के शोर के बीच एक बिंदु भर मौन यदि तुम्हें सहेजकर रखना है तो यह रहा मेरा एकांत— विरह सम विशाल अंधेरे सम नीरंध्र तुम्हारी उपेक्षा जितना गहरा जिसका साक्ष्य न सूर्य, न चंद्रमा ऐसा केवल एकांतातीत एकांत नहीं,…
Read Moreअश्कों में जो पाया है, वो गीतों में दिया है इस पर भी सुना है, कि ज़माने को गिला है जो तार से निकली है, वो धुन सबने सुनी है जो साज़ पे गुज़री है, वो किस दिल को पता है …… ज़िन्दगी से उन्स है हुस्न से लगाव है धड़कनों में आज भी इश़्क…
Read Moreजब पलकों से कोई ख़्वाब गिरता है तो नींद भी मचल जाती है उसके पीछे दौड़ जाती है आँखों को खूला छोड कर। ख़्वाबों का पीछा करना कहाँ आसान है न जागते न सोते फिर भी न जाने क्यूँ ख़्वाबो से नींद का सौदा करने की आदत सी हो गई है। ख़्वाब; क्या है…. अरमानों…
Read Moreअपने गिर्द-ओ-पेश का भी कुछ पता रख दिल की दुनिया तो मगर सब से जुदा रख लिख बयाज़-ए-मर्ग में हर जा अनल-हक़ और किताब-ए-ज़ीस्त में बाब-ए-ख़ुदा रख उस की रंगत और निखरेगी ख़िज़ाँ में ये ग़मों की शाख़ है इस को हरा रख आ ही जाएगी उदासी बाल खोले आज अपने दिल का दरवाज़ा खुला…
Read Moreआज फिर शुरू हुआ जीवन आज मैंने एक छोटी-सी सरल-सी कविता पढ़ी आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा जी भर आज मैंने शीतल जल से स्नान किया आज एक छोटी-सी बच्ची आई,किलक मेरे कन्धे चढ़ी आज मैंने आदि से अन्त तक पूरा गान किया आज फिर जीवन शुरू हुआ । – रघुवीर सहाय…
Read Moreहवा के रंग में दुनिया पे आश्कार हुआ मैं क़ैद-ए-जिस्म से निकला तो बे-कनार हुआ आश्कार = clear, manifest, visible, व्यक्त, प्रकट, ज़ाहिर, स्पष्ट, साफ़ बे-कनार = boundless, without a shore, infinite **** पढ़ के हक़ाएक़ कहीं न अंधा हो जाऊँ मुझ को अब हो सके तो कुछ अफ़्साने दो हक़ाएक़ = facts, realities ****…
Read Moreबताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं कि कल पलकों से टूटी नींद की किर्चें समेटी हैं सफ़र मैंने समंदर का किया काग़ज़ की कश्ती में तमाशाई निगाहें इसलिए बेज़ार इतनी हैं ख़ुदा मेरे अता कर मुझको गोयाई कि कह पाऊँ ज़मीं पर रात-दिन जो बातें होती मैंने देखी हैं तू अपने फ़ैसले…
Read Moreकुछ चुनिंदा अशआर : सिर्फ़ शाइ’र देखता है क़हक़हों की असलियत हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं … … … … … लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो .. .. .. .. ..…
Read Moreये वक़्त क्या है? ये क्या है आख़िर कि जो मुसलसल गुज़र रहा है ये जब न गुज़रा था, तब कहाँ था कहीं तो होगा गुज़र गया है तो अब कहाँ है कहीं तो होगा कहाँ से आया किधर गया है ये कब से कब तक का सिलसिला है ये वक़्त क्या है ये वाक़ये…
Read Moreआह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक (A prayer needs a lifetime, an answer to obtain who can live until the time that you decide to deign) दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक (snares are spread in every…
Read Moreशाम आँखों में, आँख पानी में और पानी सराए-फ़ानी में झिलमिलाते हैं कश्तियों में दीए पुल खड़े सो रहे हैं पानी में ख़ाक हो जायेगी ज़मीन इक दिन आसमानों की आसमानी में वो हवा है उसे कहाँ ढूँढूँ आग में, ख़ाक में, कि पानी में आ पहाड़ों की तरह सामने आ इन दिनों मैं…
Read MoreDeep in the Stillness He threw me away like a clod of earth. He didn’t know I was a thing with a soul. He didn’t know I was alive. He kept on throwing me like a clod of earth out of his way – onto that neglected path that happened to be mine. And so…
Read Moreधूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे गुर्बतों का दौर है जाड़ों की शिददत है बहुत …… उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मीं रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत ……. तारों भरी पलकों की बरसायी हुई ग़ज़लें है कौन पिरोये जो बिखरायी हुई ग़ज़लें ……… पास से…
Read Moreहरे दरख़्तो के चम्पई अंधेरोमें शाम के साये जब उतरते है रात की कहानी छेड देते है जुग्नूओं की महफ़िलमें। रात की रानी खुश्बू की सौगात से भर देती है यादों के मंज़र। तन्हाई कब तन्हा रह पाती है!? चाँद, सितारे, सपने मेरे साथी उगते, डूबते मेरे संग आकाश हो या हो मन का आँगन…
Read Moreइक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है दिल संग-ए-मलामत का हर-चंद निशाना है दिल फिर भी मिरा दिल है दिल ही तो ज़माना है हम इश्क़ के मारों का…
Read Moreअब कोई फूल नहीं रहा न वे फूल ही जो अपने अर्थों को अलग रख कर भी एक डोरी में गुँथ जाते थे छोटे-से क्षण की लम्बी डोरी में । अब मौसम बदल गया है और टहनियों की नम्रता कभी की झर गई है — मैं अनुभव करती हूँ बिजली का संचरण बादलों में दरारें…
Read Moreकैशोर्य के उन दिनों में मैं सुबह की ख़ुशियों से भर जाता था, पर शामों में रुदन ही रुदन था ; अब, जबकि मैं बूढ़ा हूँ हर दिन उगता है शंकाओं से आच्छन्न, तो भी इसकी सन्ध्याएँ पावन हैं, शान्त और प्रसन्न । कालान्तर / फ़्रेडरिक होल्डरलिन अमृता भारती द्वारा अनूदित …………………… Then And Now…
Read MoreSunshine A golden sun shines on floating islands in the cosmos. The rarefied mist has slipped aside. Your face quivers in my palms. The morning cupped in my hands. A soft refulgence courses through my whole being. I have drunk in the drops of light, which had slipped from your radiant soul and suffused your…
Read MoreLife is the name given to a few moments, and In but one of those fleeting moments Two eyes meet eloquently Looking up from a cup of tea, and Enter the heart piercingly And say, Today do not speak I’ll be silent too Let’s just sit thus. Holding each other’s hand United by this gift…
Read Moreमिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारो वो बेख़याल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारो कहाँ था बस में मेरे उस को रोकना यारो मेरे क़लम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारो तमाम शहर ही जिस की…
Read Moreआए हैं जिस मक़ाम से उसका पता न पूछ रुदादे-सफ़र पूछ मगर रास्ता न पूछ गर हो सके तो देख ये पाँवों के आबले सहरा कहाँ था और कहाँ ज़लज़ला न पूछ वाँ से चले हैं जबसे मुसलसल नशे में है ले जाए किस दयार में हमको नशा न पूछ वाक़िफ़ नहीं है…
Read MoreAmen Give everything away— Ideas, breath, vision, thoughts. Peel off words from the lips, and sounds from the tongue. Wipe off the lines from the palms. Give up your ego, for you are not yourself. Take off the body beautiful from your soul. Finish your prayers, say Amen! And surrender the soul. – Gulzar (…
Read Moreरात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है… आस्मान बुझता ही नहीं, और दरिया रौशन रहता है इतना ज़री का काम नज़र आता है फ़लक पे तारों का जैसे रात में ‘प्लेन’ से रौशन शहर दिखाई देते हैं! पास ही दरिया आँख पे काली पट्टी बाँध के…
Read Moreमेरे भीतर से उठ रहा है ख़लाओं का काला चाँद ढक रहा है मेरे सूरज को धीरे धीरे रंगों भरा जीवन बदल रहा है सेपिया तसवीर और फिर धीरे धीरे ब्लेक एंड व्हाइट सोचती हूँ बन जाऊं एक स्फ़टिक का प्रिज़्म कहीं से ढूँढ लाउँ एक उजली सफेद किरण जो रंगों से भर दे…
Read Moreमख़मली ढलानों पर मख़मली ढलानो पर आख़िरी आवाज़ थम चुकी है चरवाहे की दिन है कि दबे पांव गुज़र रहा है करीब से सफेद चोटियों पे रंग बिखेर रही है शफक नर्म हवाओं से गूंजती वादीमें कहीं कच्चे रास्ते है, कहीं पानी की जैसे गलियां सी और खेल रही है गलियों में डूबते हुए सूरज…
Read Moreआसमान जब मुझे अपनी बाँहों में लेता है और ज़मीन अपनी पनाहों में लेती है मैं उन दोनों के मिलन की कहानी लिख जाती हूँ, श्वास से क्षितिज बन जाती हूँ । दिशाएँ जब भी मुझे सुनती हैं हवाएँ जब भी मुझे छूती हैं मैं ध्वनि बन फैल जाती हूँ और छुअन से अहसास…
Read Moreबिखरे हुये लम्हों की लडी बना ली है जब चाहे गले मे डाल ली जब चाहे उतार दी झील का सारा पानी उतर आया आँखों में न जाने कितनी गागर खाली हैं तैरता था उसमें तिनका कोई जो यूँ ही आँखों छलक गया कभी हौले से उतरूँ सैलाब की रवानियों में कि मेरी गागर अभी…
Read Moreतलाश जारी है इन दिनों कविताओं में यथार्थ की जीवन के लक्ष्य की मानवता के उपसंहार की सबकी भिन्न रचनाओं में सत्य भी अलग-अलग है यथार्थ देखने सुनने भर अनुभूति शून्य है सब अपना घर,अपने बच्चे अपने लोग,अपना मोहल्ला अपना शहर,अपना राज्यसभा क्रमशः सबसे अन्त में आता है अपना देश विदेश की खबरों में उस…
Read Moreउजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता हमेशा हो सितारा हम-सफ़र आसाँ नहीं होता जो आँखों ओट है चेहरा उसी को देख कर जीना ये सोचा था कि आसाँ है मगर आसाँ नहीं होता बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं सहर की राह तकना ता-सहर आसाँ नहीं होता अँधेरी कासनी रातें यहीं से हो…
Read Moreआ गया था ऐसा वक्त कि भूमिगत होना पड़ा अंधेरे को नहीं मिली कोई सुरक्षित जगह उजाले से ज्यादा। छिप गया वह उजाले में कुछ यूं कि शक तक नहीं हो सकता किसी को कि अंधेरा छिपा है उजाले में। जबकि फिलहाल चारों ओर उजाला ही उजाला है! ………………………… अंधेरी रात में सड़कों पर दूधिया…
Read Moreजब साज़ की लय बदल गई थी वो रक़्स की कौन सी घड़ी थी रक़्स- dance अब याद नहीं कि ज़िंदगी में मैं आख़िरी बार कब हँसी थी जब कुछ भी न था यहाँ पे मा-क़ब्ल दुनिया किस चीज़ से बनी थी मा-क़ब्ल- before preceding, former मुट्ठी में तो रंग थे हज़ारों बस हाथ से…
Read Moreकोई ख़्वाब सर से परे रहा ये सफ़र सराब-ए-सफ़र रहा मैं शनाख़्त अपनी गँवा चुका गई सूरतों की तलाश में सराब-ए-सफ़र – mirage of journey, शनाख़्त – recognition, identification, knowledge इक कुतुब-ख़ाना हूँ अपने दरमियाँ खोले हुए सब किताबें सफ़्हा-ए-हर्फ़-ए-ज़ियाँ खोले हुए कुतुब-ख़ाना – library, सफ़्हा-ए-हर्फ़-ए-ज़ियाँ – page of wordloss अपने होने का कुछ एहसास…
Read Moreदेखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ फ़ुर्सत ने आज…
Read Moreएक क्षण भर और रहने दो मुझे अभिभूत फिर जहाँ मैने संजो कर और भी सब रखी हैं ज्योति शिखायें वहीं तुम भी चली जाना शांत तेजोरूप! एक क्षण भर और लम्बे सर्जना के क्षण कभी भी हो नहीं सकते! बूँद स्वाती की भले हो बेधती है मर्म सीपी का उसी निर्मम त्वरा से वज्र…
Read Moreकाँच के पीछे चाँद भी था काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम, वो भी थे, और मैं भी था, तनहाई भी यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं सोंधी-सोंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके-से आईने में…
Read Moreजा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये रूठना मचलना सीखें। हँसें मुस्कुराएँ गाएँ। हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें उँगली जलाएँ। अपने पाँव पर खड़े हों। जा तेरे स्वप्न बड़े हों। – दुष्यंत कुमार source: kavitakosh.org
Read Moreलम्हे दिन की गठरी खोल समेट रही हूँ होले होले गिरते लम्हे बूँदों-से छलककर टपकते लम्हे पत्तों-से गिरते, उठते लम्हे फूलों-से खिलते, मुरझाते लम्हे हवाओं-से बहते, हाथमें न आते लम्हे रेत-से फिसलते, सरकते लम्हे पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल, लम्हे ! कभी सहरा सी धूप में ओढ़े हुए बादल लम्हे तो कभी सर्दियों में…
Read Moreआशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता दाग़ देहलवी काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है मुझ को ख़बर नहीं मिरी मिट्टी कहाँ की है सुन के मिरा फ़साना उन्हें लुत्फ़ आ गया सुनता हूँ अब कि रोज़ तलब क़िस्सा-ख़्वाँ की है पैग़ाम-बर की बात पर आपस में रंज क्या मेरी…
Read Moreदिल के काबे में नमाज़ पढ़ दिल के काबे में नमाज़ पढ़, यहां-वहां भरमाना छोड़। सांस-सांस तेरी अज़ान है, सुबह शाम चिल्लाना छोड़। उसका रुप न मस्जिद में है उसकी ज्योति न मंदिर में जिस मोती को ढूंढ़ रहा तू, वो है दिल के समुन्दर में। मन की माला फेर, हाथ की यह तस्वीह घुमाना…
Read Moreकभी यूँ ही अकेले बैठना अच्छा लगता है। चुपचाप से; अपने-आप से भी खामोश रहना, अच्छा लगता है। मन की गुफाओ में बहते झरनों की धून सुनना, गुनगुनाना अच्छा लगता है। कभी दिल के दरवाज़ों को बंद रखना दस्तकों से बेपरवा होना अच्छा लगता है। दिल के बाग की खूशबूओं में खोना, महकना अच्छा लगता…
Read Moreઆ અદ્ભુત રચના પસંદ કરવાનો હેતુ એમાં થયેલો સૂફી પરંપરા, ભક્તિ માર્ગ અને અદ્વૈતનો સુભગ સંગમ છે. પરમ તત્ત્વ અહીં રંગરેજ છે, પ્રિયતમ છે, સંત નિઝામ્મુદ્દીન નું રુપ લઈને પ્રસ્તુત છે. અહીં આત્માની ચૂંદડીને પરમ તત્ત્વના રંગે રંગવાની વાત છે. આત્માને અહીં પ્રિયતમા તરીકે નિરૂપીને પ્રેમમાર્ગની ટોચનો અનુભવ કરાવવામાં આવ્યો છે. એ પરમ તત્ત્વને મળવા,…
Read Moreऔरत उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे कल्ब-ए-माहौल में लरज़ाँ शरर-ए-ज़ंग हैं आज हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक रंग हैं आज आबगीनों में तपां वलवला-ए-संग हैं आज हुस्न और इश्क हम आवाज़ व हमआहंग हैं आज जिसमें जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे उठ मेरी जान! मेरे साथ…
Read Moreमुरली बजत अखंड सदा से, तहाँ प्रेम झनकारा है। प्रेम-हद तजी जब भाई, सत लोक की हद पुनि आई। उठत सुगंध महा अधिकाई, जाको वार न पारा है। कोटि भान राग को रूपा, बीन सत-धुन बजै अनूपा ।। यह मुरली सदा से निरंतर बज रही है, और प्रेम इसकी ध्वनी है। जब मनुष्य प्रेम की…
Read Moreसदियों की गठरी सर पर ले जाती है दुनिया बच्ची बन कर वापस आती है मैं दुनिया की हद से बाहर रहता हूँ घर मेरा छोटा है लेकिन जाती है दुनिया भर के शहरों का कल्चर यक्साँ आबादी, तनहाई बनती जाती है मैं शीशे के घर में पत्थर की मछली दरिया की खुश्बू, मुझमें क्यों…
Read Moreख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं ख़ुदी में डूबते हैं फिर उभर भी आते हैं मगर ये हौसला-ए-मर्द-ए-हेच-कारा नहीं तिरे मक़ाम को अंजुम-शनास क्या जाने कि ख़ाक-ए-ज़िदा है तू ताबा-ए-सितारा नहीं यहीं…
Read Moreदिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूँ कितना है नोक-ए-ख़ंजर ही बताएगी कि ख़ूँ कितना है आँधियाँ आईं तो सब लोगों को मालूम हुआ परचम-ए-ख़्वाब ज़माने में निगूँ कितना है जम्अ करते रहे जो अपने को ज़र्रा ज़र्रा वो ये क्या जानें बिखरने में सकूँ कितना है वो जो प्यासे थे समुंदर से भी प्यासे लौटे…
Read Moreनज़्म ( zen poem ) पीली पत्तीओं के रास्तो से हो कर पहुंचे हैं; उन मौसमो के मकाम पर, जहां अब तक एक डाल हरी भरी सी है! फूलों और काँटों से परे, तितलीओं और भवरों से अलग, मौसम के बदलते मिज़ाज ठहर गए है वहां! ढूँढते नहीं वे अब बहारो के निशान। डरते नहीं…
Read Moreख़लाओं में तैरते जज़ीरों पे चम्पई धूप देख कैसे बरस रही है महीन कोहरा सिमट रहा है हथेलियों में अभी तलक तेरे नर्म चेहरे का लम्स एेसे छलक रहा है कि जैसे सुबह को ओक में भर लिया हो मैंने बस एक मध्दम-सी रोशनी मेरे हाथों-पैरों में बह रही है तेरे लबों पर ज़बान रखकर…
Read Moreये ज़मीं जिस कदर सजाई गई ये ज़मीं जिस कदर सजाई गई जिंदगी की तड़प बढ़ाई गई आईने से बिगड़ के बैठ गए जिनकी सूरत उन्हें दिखाई गई दुश्मनों से ही बैर निभ जाए दोस्तों से तो आश्नाई गई नस्ल-दर-नस्ल इंतज़ार रहा क़स्र टूटे न बेनवाई गई ज़िंदगी का नसीब क्या कहिए एक सीता थी…
Read Moreज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा रात भर तारे बातें करते हैं रात काटे कोई किधर तन्हा अपने साये से चौंक जाते हैं उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा डूबने वाले पार जा उतरे नक़्शे-पा अपने छोड़ कर तन्हा दिन गुज़रता नहीं है लोगों में रात…
Read Moreअब तक सब कुछ याद है! सफेद कुर्ते पर नीला पश्मीना ओढे तुमने जब खिडकी से बरामदे में झाँका था तुम्हारी नज़र से बतीयाने में मेरी गोटेवाली जूती सरक गई! हवा में अपनी उडान रोक परांदे थम से गए, तो चोटियाँ गुस्से से आके लिपट गई । फूलकारी दुपट्टा संभालने में कंगना और झुमके में…
Read Moreबूंदे धूँधले शीशों पर सरकती बूंदे। बारिष के रुकने पर पेडोंके पत्तो से बरसती बूंदे। कभी सोने सी; कभी हीरे सी चमकती बूंदे। परिंदे की गरदन पर थिरकती बूंदे। अपनी कोख में समाये हुए कइ इन्द्रधनु, फलक को रंग देती बूंदे! प्यासे की हलक से उतरते, दरिया बन जाती बूंदे! आँखों में छूप के बैठे तो;…
Read MoreI simply love this poem for its simplicity of words and high philosophy behind this! Very few writers can achieve this! . . . . . . हम्द नील गगन पर बैठे कब तक चाँद सितारों से झाँकोगे। पर्वत की ऊँची चोटी से कब तक दुनिया को देखोगे। आदर्शो के बन्द ग्रन्थों में कब तक…
Read Moreज़िन्दगी की सच्चाइयों को खूबसूरती से पेश करनेवाले निदा फ़ाज़ली मेरी नज़र में उजालों के , उम्मीदों के शायर है और हमारे दिलो में हमेशा ज़िन्दा रहेंगे धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटाकर देखो .. .. .. .. .. .. कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं…
Read Moreवेद न कुरान बांचे, ली न ज्ञान की दीक्षा सीखी नहीं भाषा कोई, दी नहीं परीक्षा, दर्द रहा शिक्षक अपना, दुनिया पाठशाला दुःखो की किताब, जिसमें आंसू वर्णमाला। लिखना तुम कहानी मेरी, दिल की कलम से ठाठ है फ़क़ीरी अपना, जनम जनम से। ‘कारवां गुज़र गया’ के कवि डॉ गोपालदास नीरज को ‘हिन्दी काव्य की…
Read Moreचुप सी बरसातसे भीगी रातों में जब पत्ते भी अपनी सरसराहट से चौंकते है विंडचाइम अपने मन की धुन बजाता है दिया भी नाचती परछाइयों में तुम्हारा नाम लिखता रहता है गुजरती हवा खिड़की से झांक के पूछ बैठती है ‘अब तक जगे हो?’ तुम्हारे इन्तिज़ार में कोई मुझे अकेला नहीं छोड़ता! – नेहल
Read Moreख़्वाब मरते नहीं ख़्वाब मरते नहीं ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसे कि जो रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जाएँगे जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे ख़्वाब मरते नहीं ख़्वाब तो रौशनी हैं नवा हैं हवा हैं जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं ज़ुल्म के दोज़ख़ों से भी फुँकते नहीं रौशनी और नवा…
Read Moreचुनिंदा अशआर शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है मेरे अन्दर बारिश होती रहती है। …. मैं चुप रहा तो सारा जहाँ था मेरी तरफ हक बात की तो कोई कहाँ था मेरी तरफ। …. मैंने सितमगरों को पुकारा है खुद ‘फराज़’ वरना किसी का ध्यान कहाँ था मेरी तरफ। …. कितना आसाँ था तेरे हिज्र…
Read MoreA Poem Perched On a Moment A poem perched on a moment Imprisoned in a butterfly net Then its wings cut off To keep it pinned in an album: If this is not injustice, what is? Entangled in the paper the moments are mummified Only the colours of the poem remain on my fingertips! _…
Read Moreग़ज़ल मैं ढूँढता हूँ जिसे वह जहाँ नहीं मिलता नयी ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता नयी ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाये नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता वह तेग़ मिल गयी जिससे हुआ है क़त्ल मेरा किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता वह मेरा गाँव है वो मेरे गाँव…
Read Moreकौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपरिचित? स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा नींद के सूने निलय में! कौन तुम मेरे हृदय में? अनुसरण निश्वास मेरे कर रहे किसका निरन्तर? चूमने पदचिन्ह किसके लौटते यह श्वास फिर फिर कौन बन्दी कर मुझे अब बँध…
Read Moreआँखों में जल रहा है ये बुझता नहीं धुआँ उठता तो है घटा सा, बरसता नहीं धुआँ पलकों के ढापने से भी रूकता नहीं धुआँ कितनी उँडेलीं आँखें ये बुझता नहीं धुआँ आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं महमां ये गर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ चूल्हे नहीं जलाये कि बस्ती ही जल…
Read Moreमै अनंत पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बाते उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें! उड़् उड़ कर जो धूल करेगी मेघों का नभ में अभिषेक अमिट रहेगी उसके अंचल- में मेरी पीड़ा की रेख! तारों में प्रतिबिम्बित हो मुस्कायेंगी अनंत आँखें, हो कर सीमाहीन, शून्य में मँडरायेगी अभिलाषें! वीणा होगी…
Read Moreकबीर बानी सन्तो, सहज समाधि भली। साँईते मिलन भयो जा दिन तें, सुरत न अन्त चली।। आँख न मूँदूँ काम न रूँधूँ, काया कष्ट न धारूँ। खुले नैन मैं हँस हँस देखूँ, सुन्दर रूप निहारूँ।। कहूँ सो नाम सुनूँ सो सुमिरन, जो कछु करूँ सो पूजा। गिरह-उद्यान एकसम देखूँ, भाव मिटाऊँ दूजा।। जहँ जहँ…
Read Moreक्या तुम जानते हो पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत घर-प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन के बारे में बता सकते हो तुम । बता सकते हो सदियों से अपना घर तलाशती एक बेचैन स्त्री को उसके घर का पता । क्या तुम जानते हो अपनी कल्पना में किस…
Read Moreઆવીશ? સવારનો સમય છે: બફારો છે અને તડકામાં એક પ્રતીતિકર ચમક પણ. વનસ્પતિનો હરિયાળો રંગ પણ ઠંડક વિનાનો લાગે છે. એક સુંદર મજાનું પીળું પંખી ત્યાં ઘાસ પર કૂદી રહ્યું છે બરાબર એ જ રીતે જેમ તું છે સુંદર નીરવ અને પ્રેમને ઘાસની જેમ ધીરે ધીરે ઓળખતી અને એનાથી પોતાને માટે અર્થ શોધતી. આ પંખીને…
Read Moreपिछली रातों में जब ठंडी हवाएँ चलती है, अकेलेपन की! तब आके लिपट जाती है, नरम गर्म कम्बलों सी तुम्हारी याद! -नेहल
Read Moreऐश ट्रे इलहाम के धुएँ से लेकर सिगरेट की राख तक उम्र की सूरज ढले माथे की सोच बले एक फेफड़ा गले एक वीयतनाम जले… और रोशनी अँधेरे का बदन ज्यों ज्वर में तपे और ज्वर की अचेतना में – हर मज़हब बड़राये हर फ़लसफ़ा लंगड़ाये हर नज़्म तुतलाये और कहना-सा चाहे कि हर सल्तनत…
Read Moreबातें आ साजन, आज बातें कर लें… तेरे दिल के बाग़ों में हरी चाह की पत्ती-जैसी जो बात जब भी उगी, तूने वही बात तोड़ ली हर इक नाजुक बात छुपा ली, हर एक पत्ती सूखने डाल दी मिट्टी के इस चूल्हे में से हम कोई चिनगारी ढूँढ़ लेंगे एक-दो फूँफें मार लेंगे बुझती लकड़ी…
Read Moreहम भी दरया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ……….. जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है आँखों ने कही मील का पत्थर नहीं देखा ………. कही यूँ भी आ मिरी आँखमें कि मिरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे,…
Read MoreTrying something new, something different! I hope you will like it! गिले-शिकवे की हवाओंमें है नमी, दिलका मौसम है धुआँ धुआँ, रुह की ज़मीं भी है नम ईश्क का पौधा तो लग चूका धूप सी तेरी हँसी की तलाश है। -नेहल
Read Moreमीर तक़ी मीर (1722-23 – 1810) उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर जिन्हें ‘ ख़ुदा-ए-सुख़न, (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है। कुछ अशआर दिल से रुख़सत हुई कोई ख़्वाहिश गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता गिर्या- weeping, lamentation हम ख़ुदा के कभी क़ाइल ही न थे उन को देखा तो ख़ुदा याद आया …
Read Moreचांद और सितारे डरते-डरते दमे-सहर से तारे कह्ने लगे क़मर से नज़ारे रहे वही फ़लक पर हम थक भी गये चमक-चमक कर काम अपना है सुबह-ओ-शाम चलना चलना, चलना, मुदाम चलना बेताब है इस जहां की हर शै कहते है जिसे सकूं, नहीं है होगा कभी ख़त्म यह सफ़र क्या मंज़िल कभी आयेगी नज़र क्या?…
Read Moreमेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है सड़कें – बेतुकी दलीलों-सी… और गलियाँ इस तरह जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता कोई उधर हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ दीवारें-किचकिचाती सी और नालियाँ, ज्यों मुँह से झाग बहता है यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी जो उसे देख कर यह…
Read Moreતારા પ્રેમનું એક ટીપું એમાં ભળી ગયું હતું તેથી મેં જિંદગીની બધી કડવાશ પી લીધી…. . . . . . . . મારું સરનામું આજે મેં મારા ઘરનો નંબર ભૂંસી નાખ્યો અને ગલીને માથે લાગેલું ગલીનું નામ હઠાવી નાંખ્યું છે અને પ્રત્યેક રસ્તાની દિશાનું નામ ભૂંસી નાંખ્યું છે પરંતુ તમારે જો ખરેખર મને પામવી હોય…
Read Moreजो छोड़ आये है पीछे ; वोह गलियाँ वोह मकान वोह दीवारें वोह दरीचे अपनी शक़्ल भूल चुके हैं ! गुजरी हवाओं के थपेड़ोंमे अपने अहसास के पत्ते खो चुके है! आज मेरा माज़ी अपनी सफर से भटक गया है जानी पहचानी राहों के बदले रंगरूपमें कहीं बह गया है! आंसुओं की ओस से क्या…
Read Moreदर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ। भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी दिवाली अपनी अमावसोकी करके जीओ । . . . . . . . . . . बुइने लगी है आग ज़िंदगीकी,मेरे दोस्त फूंकदो एक-दो नज़्म शायद लौ…
Read Moreमुलाक़ात यह रात उस दर्द का शजर है जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है अज़ीमतर है कि उसकी शाख़ों में लाख मशअल-बकफ़ सितारों के कारवां, घिर के खो गए हैं हज़ार महताब उसके साए में अपना सब नूर, रो गए हैं यह रात उस दर्द का शजर है जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है मगर इसी रात…
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