All articles filed in नेहल

सह अस्तित्व – नेहल
हजारों कन्सट्रकशन वर्क के रजकणसेघूंटा हुआ हवा का दम छूटा और ली राहत की साँसबेवजह इधर-उधर दौडते रहते पहियों केधुंए से चोक हुए गले को पवनने किया साफ़आह, आसमान आज लगे नहाया, साफ़, नीलाधूप चमक रही उजलीतृणांकुर अपना कोमल शीश उठाए देख रहे अजूबावातावरण में गूंजती पक्षियों की ऑर्केस्ट्रा परडोल रहे है पेड़प्रकृति मना रही…
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अश्मीभूत हो रहे भस्मासूर हम – नेहल
बहते हुए काल की गर्तामें अश्मीभूत हो रहे हम! कुछ सदिओं की धरोहर परंपराओं से आज को मूल्यांकित करने में मशरुफ़ सदिओं के अंघेरे कर रहे हैं अट्टहास्य हमारे महान, श्रेष्ठ होने के दावों पर। इस अकळ, गहन ब्रह्मांड के एक बिंदु मात्र जिसको सूर्य बनाने की जिदमें अहोनिश जलते-बुझते हम। बहेती, लुप्त हो रही…
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ख़्वाब – नेहल
जब पलकों से कोई ख़्वाब गिरता है तो नींद भी मचल जाती है उसके पीछे दौड़ जाती है आँखों को खूला छोड कर। ख़्वाबों का पीछा करना कहाँ आसान है न जागते न सोते फिर भी न जाने क्यूँ ख़्वाबो से नींद का सौदा करने की आदत सी हो गई है। ख़्वाब; क्या है…. अरमानों…
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सफ़र – नेहल
हरे दरख़्तो के चम्पई अंधेरोमें शाम के साये जब उतरते है रात की कहानी छेड देते है जुग्नूओं की महफ़िलमें। रात की रानी खुश्बू की सौगात से भर देती है यादों के मंज़र। तन्हाई कब तन्हा रह पाती है!? चाँद, सितारे, सपने मेरे साथी उगते, डूबते मेरे संग आकाश हो या हो मन का आँगन…
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सूर्य ग्रहन- नेहल
मेरे भीतर से उठ रहा है ख़लाओं का काला चाँद ढक रहा है मेरे सूरज को धीरे धीरे रंगों भरा जीवन बदल रहा है सेपिया तसवीर और फिर धीरे धीरे ब्लेक एंड व्हाइट सोचती हूँ बन जाऊं एक स्फ़टिक का प्रिज़्म कहीं से ढूँढ लाउँ एक उजली सफेद किरण जो रंगों से भर दे…
Read Moreलम्हे- नेहल
लम्हे दिन की गठरी खोल समेट रही हूँ होले होले गिरते लम्हे बूँदों-से छलककर टपकते लम्हे पत्तों-से गिरते, उठते लम्हे फूलों-से खिलते, मुरझाते लम्हे हवाओं-से बहते, हाथमें न आते लम्हे रेत-से फिसलते, सरकते लम्हे पलकों से भागे सपनों-से नीमपके फल, लम्हे ! कभी सहरा सी धूप में ओढ़े हुए बादल लम्हे तो कभी सर्दियों में…
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अच्छा लगता है- नेहल
कभी यूँ ही अकेले बैठना अच्छा लगता है। चुपचाप से; अपने-आप से भी खामोश रहना, अच्छा लगता है। मन की गुफाओ में बहते झरनों की धून सुनना, गुनगुनाना अच्छा लगता है। कभी दिल के दरवाज़ों को बंद रखना दस्तकों से बेपरवा होना अच्छा लगता है। दिल के बाग की खूशबूओं में खोना, महकना अच्छा लगता…
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नज़्म – नेहल
नज़्म ( zen poem ) पीली पत्तीओं के रास्तो से हो कर पहुंचे हैं; उन मौसमो के मकाम पर, जहां अब तक एक डाल हरी भरी सी है! फूलों और काँटों से परे, तितलीओं और भवरों से अलग, मौसम के बदलते मिज़ाज ठहर गए है वहां! ढूँढते नहीं वे अब बहारो के निशान। डरते नहीं…
Read Moreइक सबसे छोटी लव-स्टोरी! – नेहल
अब तक सब कुछ याद है! सफेद कुर्ते पर नीला पश्मीना ओढे तुमने जब खिडकी से बरामदे में झाँका था तुम्हारी नज़र से बतीयाने में मेरी गोटेवाली जूती सरक गई! हवा में अपनी उडान रोक परांदे थम से गए, तो चोटियाँ गुस्से से आके लिपट गई । फूलकारी दुपट्टा संभालने में कंगना और झुमके में…
Read Moreबूंदे – नेहल
बूंदे धूँधले शीशों पर सरकती बूंदे। बारिष के रुकने पर पेडोंके पत्तो से बरसती बूंदे। कभी सोने सी; कभी हीरे सी चमकती बूंदे। परिंदे की गरदन पर थिरकती बूंदे। अपनी कोख में समाये हुए कइ इन्द्रधनु, फलक को रंग देती बूंदे! प्यासे की हलक से उतरते, दरिया बन जाती बूंदे! आँखों में छूप के बैठे तो;…
Read Moreतुम्हारे इन्तिज़ार में – नेहल
चुप सी बरसातसे भीगी रातों में जब पत्ते भी अपनी सरसराहट से चौंकते है विंडचाइम अपने मन की धुन बजाता है दिया भी नाचती परछाइयों में तुम्हारा नाम लिखता रहता है गुजरती हवा खिड़की से झांक के पूछ बैठती है ‘अब तक जगे हो?’ तुम्हारे इन्तिज़ार में कोई मुझे अकेला नहीं छोड़ता! – नेहल
Read Moreतुम्हारी याद! -नेहल
पिछली रातों में जब ठंडी हवाएँ चलती है, अकेलेपन की! तब आके लिपट जाती है, नरम गर्म कम्बलों सी तुम्हारी याद! -नेहल
Read MoreMy words my sketch -नेहल
Trying something new, something different! I hope you will like it! गिले-शिकवे की हवाओंमें है नमी, दिलका मौसम है धुआँ धुआँ, रुह की ज़मीं भी है नम ईश्क का पौधा तो लग चूका धूप सी तेरी हँसी की तलाश है। -नेहल
Read Moreघरौंदे -नेहल
जो छोड़ आये है पीछे ; वोह गलियाँ वोह मकान वोह दीवारें वोह दरीचे अपनी शक़्ल भूल चुके हैं ! गुजरी हवाओं के थपेड़ोंमे अपने अहसास के पत्ते खो चुके है! आज मेरा माज़ी अपनी सफर से भटक गया है जानी पहचानी राहों के बदले रंगरूपमें कहीं बह गया है! आंसुओं की ओस से क्या…
Read Moreकुछ ख़याल कुछ लब़्ज़ – नेहल
दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ। भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी दिवाली अपनी अमावसोकी करके जीओ । . . . . . . . . . . बुइने लगी है आग ज़िंदगीकी,मेरे दोस्त फूंकदो एक-दो नज़्म शायद लौ…
Read Moreआईने – नेहल
उतार लिए जब से सारे आईने अपने अंदर , सूरत अपनी कहीं नज़र आती नहीं | -नेहल
Read Moreइश्क – नेहल
थक चुके इस प्यास की सिलवटें गिनते गिनते आओ इन सिलवटों के समंदर में डूब जाते हैं… शायद ये इश्क नाव बनकर उभर आए । -नेहल
Read Moreवसंत के ख्वाब – नेहल
आज बादल जम कर बरसे, ज़मींको अपनी नमीं से भर दिया। अपने सारे ख्वाब ज़मींकी छातिमें उडेल दिये। अब धरती बुन रही है हरे हरे मौज़ॆ, ख्वाब जो पनप रहे है उसके अंदर!! वसंत ले कर आएगा बधाई, अब तो बस ईन्द्रधनु बाँट रहा है रंग-रंगी मिठाईयाँ!! -नेहल
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रात – नेहल
रातके माथे पर जो बल पडे है, चाँदके सफ़रका बयाँ है। उजालोंके सूरज तो निकले है कबसे, ये कौनसा चिलमन दर्मियाँ है। – – – – – – —- – – – आओ एक आरजूकी तिली जलाओ, कि रात आज काफी जगी हुई है। कहेदो हवाओ से चूपचाप गुजरे, कि निंदकी चिठ्ठी कहीं उड ग्ई…
Read Moreसुकून – नेहल
कल रात जब मैने बिना नींद के पथराइ आँखोसे देखा । आधा अधूरासा चाँद खिला था मैले धूंधले आसमाँ के माथे पर । पेड चुपचाप से खडे थे एक पत्ता भी हिलाये बिना सुन रहे थे; एक-दूजे की गोद मे लेटे मकानो की फुसफुसाहट! एक हवाकी लहर जो गूजरा करती थी हमारे दरमियाँ आज न…
Read Moreएक अलग अंदाज़…. – नेहल
एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये, ना उसने कुछ पूछा , ना हम बयां करने रुके ! ज़ींदगीकी की किताब आखरी पन्ने तक पलटते गये, जो जिया हमने, वोह गहराइ में लब्ज़ कहां उतर पाये ! तेर्री परस्तीमें ही खूश होके जिते गये , तेरे मिलने के वादों पे एतबार…
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