आजकी पंक्तियाँ : मुनीर मोमिन

शाम का जादू
हर सुब्ह जब मैं जागता हूँ
मुझे शाम की ख़्वाहिश बेचैन करने लगती है
और मैं काग़ज़ पर
एक दरख़्त और उसका साया बनाने लगता हूँ
लेकिन सुब्ह शाम का चेहरा नहीं ओढ़ती!

अगर मैं लिखना जानता
तो सुब्ह के होंठों में शाम लिखता।

~ मुनीर मोमिन