लड़की कैक्टस थी : वियोगिनी ठाकुर

लड़की कैक्टस थी

बहुत से लोगों की आँख में चुभती रही वह
लड़की काँटा थी या थी—
पूरा का पूरा बबूल का पेड़
जिस पर स्वाभिमान नाम का प्रेत
और सच्चाई नाम की चुड़ैल डोलते रहे सदा

माँ-बाप के लिए पहाड़ थी वह लड़की
जिस पर वह साधिकार चढ़ना चाहते थे
और पार उतर नहाना चाहते थे गंगा
वह कल्पना करती थी
कि कभी अगर ऐसा होता
तब वह दिन उनके लिए कितना सुकून भरा होता

लड़की सीने पर रखा कोई भारी पत्थर थी

लड़की सिर्फ़ काँटा नहीं
काँटों भरा वह हरा रंग थी
जिस पर दुनिया की तमाम जद्दोजहद के बावजूद
पीला बहुत देर से उतरा
जिसके काँटों भरे वजूद में भी खिलता रहा
किसी-किसी मौसम कोई ख़ूबसूरत-सा फूल

लड़की तपती रेत में भी ख़ुद को बचाए रखना जानती थी
लड़की टुकड़ा भर पानी से सिर्फ़ प्यास बुझाना नहीं
प्यास और पानी दोनों बचाए रखना जानती थी
लड़की कैक्टस थी।
~ वियोगिनी ठाकुर

source : sadaneera.com