आप सबन में सब तें न्यारे चार बुद्धि के मनुष सँवारे

प्रथम बुद्धि जल लीक खिंचाई खिंचती जाय सोइ मिटि जाई

दूजी बुद्धि लीक रस्ते की चलै मनोरथ मिटै हिये की

तीजो बुद्धि पाहन की रेखा घटै सही पर बढै न नेका

चौथी तेल बूँद जल माहीं फैलत फैलत फैलत जाही

छोटे से दीरघ परकासै बरन बरन के रंग निकासै

तीन बुद्धि जग में दरसावै चौथी बुद्धि कोइ विरले पावै

‘सहजो’ बुद्धि सब थोथी कहिये गुरु कृपा सबन में चहिये

~सहजो बाई (1725)