चाँद तारे बना के काग़ज़ पर ख़ुश हुए घर सजा के काग़ज़ पर बस्तियाँ क्यूँ तलाश करते हैं लोग जंगल उगा के काग़ज़ पर जाने क्या हम से कह गया मौसम ख़ुश्क पत्ता गिरा के काग़ज़ पर हँसते हँसते मिटा दिए उस ने शहर कितने बसा के काग़ज़ पर हम ने चाहा कि हम भी उड़ जाएँ एक चिड़िया उड़ा के काग़ज़ पर लोग साहिल तलाश करते हैं एक दरिया बहा के काग़ज़ पर नाव सूरज की धूप का दरिया थम गए कैसे आ के काग़ज़ पर ख़्वाब भी ख़्वाब हो गए 'आदिल' शक्ल-ओ-सूरत दिखा के काग़ज़ पर ~ आदिल रज़ा मंसूरी ( Born 1978 )
One thought on “गज़ल : आदिल रज़ा मंसूरी”
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Amazing!
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