वे सारे फूल जिनके नाम मुझे नहीं पता
वे सारे सुर मैं जिन्हें नहीं पहचानता
वे सारे शब्द जो डिक्शनरी से भटक गए थे
वे सारे सुख जो भूल गए थे अपना ठिकाना
वे सारे पाप जिनके शाप की परवाह नहीं
वे सारे जंगल जिनके हरा होने का वक़्त क़रीब हो
वे सारी बूँदें जो उछलती हों नदी से नदी बनने
वे सारे प्लेटफ़ॉर्म जो सिर्फ़ अगवानी के लिए बने हों
वे सारे जज़्बात जो कहे जाने का मौक़ा तलाशते हों
वो सारी मुहब्बत जो घुमड़ पड़ी हो बादलों की तरह
वे सारे अरमान जो त्योहार मनाने चल पड़े हों
वे तमाम तीर्थयात्राएँ, मन्नत, व्रत, टोटके पहुँचते अपनी परिणति तक
वह नाद, वह गूँज, वह मनुष्य होने की प्राचीनतम ख़ुशी
हल्के से झुकी वे हरसिंगार की डालें
वे सारी रश्मियाँ जो चाँद से आकर तुम्हारी दमक से छिटकी हों
प्यार है
मेरे एकांत में
ख़ुशियों का अनंत कलरव!
~निधीश त्यागी ( Born 1969 )
source : hindwi.org