जे़हनों में ख़याल जल रहे हैं
जे़हनों में ख़याल जल रहे हैं
सोचों के अलाव-से लगे हैं
अलाव = bonfire
दुनिया की गिरिफ्त में हैं साये,
हम अपना वुजूद ढूंढते हैं
अब भूख से कोई क्या मरेगा,
मंडी में ज़मीर बिक रहे हैं
माज़ी में तो सिर्फ़ दिल दुखते थे,
इस दौर में ज़ेहन भी दुखे हैं
ज़ेहन = mind
सिर काटते थे कभी शहनशाह,
अब लोग ज़ुबान काटते हैं
हम कैसे छुड़ाएं शब से दामन,
दिन निकला तो साए चल पड़े हैं
लाशों के हुजूम में भी हंस दें,
अब ऐसे भी हौसले किसे हैं
~अहमद नदीम क़ासमी (1916-2006)
source : hindi-kavita.com