श्रोता

कविता-पाठ करते वक़्त
मेरे गले में
अचानक से प्यास उठती है।

डूब जाती है आवाज़
जैसे गिर पड़ी हो
नदी के ऊपर से उड़ रहे किसी पक्षी के
मुँह में पकड़े हुए शिकार-सी।

मैं पेश करती हूँ कुछ कविताएँ
सिवाय उसके!

मेरी वह एक प्रिय कविता
जो मर रही होती है उस नदी में।

कविता श्रवण के लिए बैठे हुए चेहरे
जब मैं देखती हूँ तो मुझे लगता है
ये वही लोग हैं
जो देख रहे हैं नदी के तट पर खड़े
मुझे डूबते हुए
और कुछ नहीं कर रहे
बचाने के लिए।

~ मनीषा जोषी ( source: sadaneera.com)