सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना 
क़दम यक़ीन में मंज़िल गुमान में रखना 

जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन 
जो खो गया है उसे भी मकान में रखना 

जो देखती हैं निगाहें वही नहीं सब कुछ 
ये एहतियात भी अपने बयान में रखा 

वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता 
बना के चाँद उसे आसमान में रखना 

चमकते चाँद-सितारों का क्या भरोसा है 
ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना 

  • निदा फ़ाज़ली

2 thoughts on “गज़ल – निदा फ़ाज़ली

  1. નિદા સાહેબ – એક સારા કવિ – એમનું પઠન પણ એટલું જ સરાહનીય.

    Liked by 2 people

    1. મારા પ્રિય કવિ છે, એટલે એમની કલમ અહીં રજૂ કરવાનો લોભ નથી રોકી શક્તી.

      Liked by 1 person

Comments are closed.