मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
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ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
मेयारी = qualitative
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आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
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अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ
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मस्जिद में दूर दूर कोई दूसरा न था
हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए
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आप की नज़रों में सूरज की है जितनी अज़्मत
हम चराग़ों का भी उतना ही अदब करते हैं
अज़्मत = glory, greatness
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ज़ेहन में जब भी तिरे ख़त की इबारत चमकी
एक ख़ुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से
इबारत = composition
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चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
हम आसमाँ से ग़ज़ल की ज़मीन लाए हैं
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पावँ पत्थर कर के छोड़ेगी अगर रुक जाइए
चलते रहिए तो ज़मीं भी हम-सफ़र हो जाएगी
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उजाले बाँटने वालों पे क्या गुज़रती है
किसी चराग़ की मानिंद जल के देखूँगा
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जागती आँखों के ख़्वाबों को ग़ज़ल का नाम दे
रात भर की करवटों का ज़ाइक़ा मंज़ूम कर
मंज़ूम = versified
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ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया
तहज़ीबों = civilisations मक़्तल = a place of slaughter
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शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया
कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया
आतिश-दान = fireplace
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इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले
राह में तीरगी होगी मिरे आँसू रख ले
तीरगी= darkness
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देवताओं और ख़ुदाओं की लगाई आग ने
देखते ही देखते बस्ती को जंगल कर दिया
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ग़ज़ल
सिर्फ़ सच और झूट की मीज़ान में रक्खे रहे
हम बहादुर थे मगर मैदान में रक्खे रहे
मीज़ान= balance
जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली
चाँद सूरज घर के रौशन-दान में रक्खे रहे
धीरे धीरे सारी किरनें ख़ुद-कुशी करने लगीं
हम सहीफ़ा थे मगर जुज़्दान में रक्खे रहे
सहीफ़ा= a religious book जुज़्दान= cloth to wrap up book
बंद कमरे खोल कर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे दालान में रक्खे रहे
दालान = verandah
सिर्फ़ इतना फ़ासला है ज़िंदगी से मौत का
शाख़ से तोड़े गए गुल-दान में रक्खे रहे
ज़िंदगी भर अपनी गूँगी धड़कनों के साथ साथ
हम भी घर के क़ीमती सामान में रक्खे रहे
- राहत इंदौरी ( 1950-2020 )