यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो
क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है
चलता जाता है कारवान-ए-हयात इब्तिदा क्या है इंतिहा क्या है
ख़ुद से मिलने का चलन आम नहीं है वर्ना अपने अंदर ही छुपा होता है रस्ता अपना
जो किताबों में है वो सब का है
तू बता तेरा तजरबा क्या है
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एक तस्वीर
सुब्ह की धूप
धुली शाम का रूप
फ़ाख़्ताओं की तरह सोच में डूबे तालाब
अजनबी शहर के आकाश
अँधेरों की किताब
पाठशाला में चहकते हुए मासूम गुलाब
घर के आँगन की महक
बहते पानी की खनक
सात रंगों की धनक
तुम को देखा तो नहीं है
लेकिन
मेरी तंहाई में
ये रंग-बिरंगे मंज़र
जो भी तस्वीर बनाते हैं
वो!
तुम जैसी है
–निदा फ़ाज़ली [1938- 2016]