काश ऐसा होता
कि ईश्वर
मेरे बिस्तर के पास रखे
पानी भरे गिलास के अन्दर से
बैंगनी प्रकाश पुंज-सा अचानक प्रकट हो जाता…
काश ऐसा होता
कि ईश्वर
शाम की अजान बन कर
हमारे ललाट से दिन भर की थकान पोंछ देता…
काश ऐसा होता
कि ईश्वर
आसूँ की एक बूंद बन जाता
जिसके लुढ़कने का अफ़सोस
हम मनाते रहते पूरे-पूरे दिन…
काश ऐसा होता
कि ईश्वर
रूप धर लेता एक ऐसे पाप का
हम कभी न थकते
जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते…
काश ऐसा होता
कि ईश्वर
शाम तक मुरझा जाने वाला गुलाब होता
तो हर नई सुबह
हम नया फूल ढूंढ कर ले आया करते…
काश ऐसा होता…
– लीना टिब्बी
अंग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र
source:kavitakosh.org