शाम आँखों में, आँख पानी में
और पानी सराए-फ़ानी में
झिलमिलाते हैं कश्तियों में दीए
पुल खड़े सो रहे हैं पानी में
ख़ाक हो जायेगी ज़मीन इक दिन
आसमानों की आसमानी में
वो हवा है उसे कहाँ ढूँढूँ
आग में, ख़ाक में, कि पानी में
आ पहाड़ों की तरह सामने आ
इन दिनों मैं भी हूँ रवानी में
– बशीर बद्र (रोशनी के घरौंदे)
सराए-फ़ानी = मर्त्यलोक, रवानी = प्रवाह
👌👌
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