हरे दरख़्तो के
चम्पई अंधेरोमें
शाम के साये
जब उतरते है
रात की कहानी
छेड देते है
जुग्नूओं की महफ़िलमें।
रात की रानी
खुश्बू की सौगात से
भर देती है यादों के मंज़र।
तन्हाई कब तन्हा रह पाती है!?
चाँद, सितारे, सपने
मेरे साथी
उगते, डूबते
मेरे संग
आकाश हो या हो मन का आँगन
सफ़र तो ये रोज़ करते है
शायद इन्हें भी
तलाश है
इक सुकून की
मेरी तरह!
– नेहल
Poetry , my poems © Copyright 2017, Nehal
5 thoughts on “सफ़र – नेहल”
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Sukun ,
Bhitar puch kar dekho hamsafar bhi sath he.
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Thanks for visiting my blog and appreciating!
You said it rightly!
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😊
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Nice…!
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Thanks!
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