कैशोर्य के उन दिनों में मैं
सुबह की ख़ुशियों से भर जाता था,
पर शामों में रुदन ही रुदन था ;
अब, जबकि मैं बूढ़ा हूँ
हर दिन उगता है
शंकाओं से आच्छन्न, तो भी
इसकी सन्ध्याएँ पावन हैं,
शान्त और प्रसन्न ।

कालान्तर / फ़्रेडरिक होल्डरलिन
अमृता भारती द्वारा अनूदित

……………………

Then And Now – Poem by Friedrich Hölderlin

In my youth I enjoyed the morning
And wept at night; now that I’m older
My day begins with doubt but
Its end is sacred and serene.
Friedrich Hölderlin