मेरे भीतर से उठ रहा है
ख़लाओं का काला चाँद
ढक रहा है मेरे सूरज को
धीरे धीरे
रंगों भरा जीवन
बदल रहा है
सेपिया तसवीर
और फिर
धीरे धीरे
ब्लेक एंड व्हाइट
सोचती हूँ
बन जाऊं
एक स्फ़टिक का प्रिज़्म
कहीं से ढूँढ लाउँ
एक उजली सफेद किरण
जो रंगों से भर दे
मेरे चाँद को
और मुक्त कर दे
मेरे सूर्य को
ग्रहन से।
– नेहल
Poetry © Copyright 2017, Nehal
बहुत खूब बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
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जी बहुत शुक्रिया आपका!
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bahut badhiya likha hai…
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बहुत बहुत शुक्रिया आपका!
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