कोई ख़्वाब सर से परे रहा ये सफ़र सराब-ए-सफ़र रहा
मैं शनाख़्त अपनी गँवा चुका गई सूरतों की तलाश में
सराब-ए-सफ़र – mirage of journey, शनाख़्त – recognition, identification, knowledge
इक कुतुब-ख़ाना हूँ अपने दरमियाँ खोले हुए
सब किताबें सफ़्हा-ए-हर्फ़-ए-ज़ियाँ खोले हुए
कुतुब-ख़ाना – library, सफ़्हा-ए-हर्फ़-ए-ज़ियाँ – page of wordloss
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ
ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ
….. ….. …… ….. ….. ……
बराबर ख़्वाब से चेहरों की हिजरत देखते रहना
गुज़र चुकने पे भी वो शाम-ए-रहलत देखते रहना
धनक की बारिशें बरफ़ाब शहरों पर नहीं होतीं
यहाँ फूलों का रस्ता उम्र भर मत देखते रहना
किताबों की तहों में ढूँढना ना-दीदा अश्या का
पलट कर फिर कोई ख़ाली इबारत देखते रहना
हुजूम-ए-शहर के सन्नाटे में गुम-सुम वो टीला सा
उसी को आते जाते बे-ज़रूरत देखते रहना
जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है
फ़रिश्तों जैसी बस मेरी इबादत देखते रहना
‘मुसव्विर’ कुछ न कहने का ये दुख भी सख़्त ज़ालिम है
तलब कर लेगी लफ़्ज़ों की अदालत देखते रहना
– मुसव्विर सब्ज़वारी (1932-2002)
शाम-ए-रहलत – evening of demise, धनक – rainbow, ना-दीदा – unseen, अश्या – things, objects, इबारत – composition, mode of expression, हुजूम-ए-शहर – crowd of city
source: Rekhta.org
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Grear gazal 💞
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