​नज़्म ( zen poem )

पीली पत्तीओं के रास्तो से हो कर पहुंचे हैं;

उन मौसमो के मकाम पर,

जहां अब तक एक डाल हरी भरी सी है!

फूलों और काँटों से परे,

तितलीओं और भवरों से अलग,

मौसम के बदलते मिज़ाज ठहर गए है वहां!

ढूँढते नहीं वे अब

बहारो के निशान।

डरते नहीं

पतझड़ की तेज हवाओं के

थपेडो से।

हरी भरी डाली झुकी है जिस

निली सी नदी पर

जहां अब पानीओंमें अक्स

बनते-बिगडते नहीं।

समय का फूल;

अब न सूरज की गर्मी से झुलसता है,

न बारिषों में बहता है!

स्फटिक सा रंगहीन फूल

समाये हुए है सारे रंग

अपने अंदर।

सुकून के पाखी

जीते है उसी की

ओस की बुंदो पर।

नेहल

Poetry, my poems © Copyright 2016, Nehal

 

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