ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा -गुलज़ार

ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा

ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा
काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

रात भर तारे बातें करते हैं
रात काटे कोई किधर तन्हा

अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा

डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्शे-पा अपने छोड़ कर तन्हा

दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा

हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गया किधर तन्हा
गुलज़ार
यार जुलाहे….सम्पादनः यतीन्द्र मिश्र

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