वेद न कुरान बांचे, ली न ज्ञान की दीक्षा
सीखी नहीं भाषा कोई, दी नहीं परीक्षा,
दर्द रहा शिक्षक अपना, दुनिया पाठशाला
दुःखो की किताब, जिसमें आंसू वर्णमाला।
लिखना तुम कहानी मेरी, दिल की कलम से
ठाठ है फ़क़ीरी अपना, जनम जनम से।
‘कारवां गुज़र गया’ के कवि डॉ गोपालदास नीरज को ‘हिन्दी काव्य की वीणा‘ कहा जाता है।आपकी यशस्वी रचना प्रस्तुत कर रही हूं,
हम पत्ते तूफ़ान के
हम पत्ते तूफ़ान के।
हम किसको क्या दें-लें हम तो बंजारे वीरान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
ऊपर उठते, नीचे गिरते
आंधी-संग भटकते फिरते
जिस पर लंगर नहीं, मुसाफ़िर हम एेसे जलयान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
रमता जोगी, बहता पानी-
अपनी इतनी सिर्फ़ कहानी
पल-भर के मेहमान कि जैसे बुझते दिये विहान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
कुछ पीड़ा, कुछ आंसू क्वांरे
बस यह पूंजी पास हमारे,
ताजमहल में देखे हमने पत्थर कबरिस्तान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
सपने हम न किसी काजल के,
अपने हम न किसी आंचल के,
नीलामी पर चढ़े खिलौने काग़ज़ की दूकान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
जात अजानी, नाम अजाना,
कहीं न अपना ठौर ठिकाना,
बिना कुटी के संन्यासी हम, मकीं बग़ैर मकान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
जुड़े नुमायश, लगें कि मेले,
रहे यहां हम सदा अकेले,
कौन हार में जड़ें हमें, हम मानिक दुख की खान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
दिल शोला, आंखें शबनम हैं,
हमसे मत पूछो क्या हम हैं
मज़हब अपना प्यार जनम से आशिक़ हम इन्सान के।
हम पत्ते तूफ़ान के।।
– महाकवि डॉ गोपालदास नीरज ( born 4th jan 1925 )
[कारवां गुज़र गया से]
वाह- वाह!
धन्यवाद आपका जो आपने बड़े दिनों बाद “नीरज” जी की कविता पढ़ने का अवसर दिया…!😊😊😊👌👐👏👏
Good work…
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धन्यवाद आप का! नीरजजी जैसे महान कवि की अनेक अदभुत रचनाओं में से किसी एक का चयन करना मुश्किल है ।
मुझे ख़ुशी है आपको यह रचना पसंद आई !😊😊
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स्वागत है आपका!
😊
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