चुप सी
बरसातसे भीगी
रातों में
जब
पत्ते भी
अपनी सरसराहट से
चौंकते है
विंडचाइम अपने
मन की धुन
बजाता है
दिया भी
नाचती परछाइयों में
तुम्हारा नाम
लिखता रहता है
गुजरती हवा
खिड़की से झांक के
पूछ बैठती है
‘अब तक जगे हो?’
तुम्हारे इन्तिज़ार में
कोई मुझे
अकेला नहीं
छोड़ता!
– नेहल