आँखों में जल रहा है ये बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा, बरसता नहीं धुआँ
पलकों के ढापने से भी रूकता नहीं धुआँ
कितनी उँडेलीं आँखें ये बुझता नहीं धुआँ
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
महमां ये गर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ
चूल्हे नहीं जलाये कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये है अब उठता नहीं धुआँ
काली लकीरें खींच रहा है फ़िज़ाओं में
बौरा गया है कुछ भी तो खुलता नहीं धुआँ
आँखों के पोंछने से लगा आग का पता
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
चिंगारी इक अटक सी गई मेरे सीने में
थोड़ासा आ के फूंक दो, उड़ता नहीं धुआँ
– गुलज़ार
( रात पश्मीने की)
लाजवाब
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Thanks!
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Wah solid
Sent from my Samsung Galaxy smartphone.
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आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
महमां ये गर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ
Awesome !
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