दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ
मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ।
भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी
दिवाली अपनी अमावसोकी करके जीओ ।
. . . . . . . . . .
बुइने लगी है
आग ज़िंदगीकी,मेरे दोस्त
फूंकदो एक-दो नज़्म
शायद लौ थोडी तेज़ हो जाए।
-नेहल
दर्दकी सुराही, भर के आँसुओ से जीओ
मॅय ज़िंदगीका समज़ के उसे पीओ।
भरके आँखोमें रोज़ सपनोकी रोशनी
दिवाली अपनी अमावसोकी करके जीओ ।
. . . . . . . . . .
बुइने लगी है
आग ज़िंदगीकी,मेरे दोस्त
फूंकदो एक-दो नज़्म
शायद लौ थोडी तेज़ हो जाए।
-नेहल