मुलाक़ात
यह रात उस दर्द का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
अज़ीमतर है कि उसकी शाख़ों
में लाख मशअल-बकफ़ सितारों
के कारवां, घिर के खो गए हैं
हज़ार महताब उसके साए
में अपना सब नूर, रो गए हैं
यह रात उस दर्द का शजर है
जो मुझसे तुझसे अज़ीमतर है
मगर इसी रात के शजर से
यह चन्द लम्हों के ज़र्द पत्ते
गिरे हैं और तेरे गेसुओं में
उलझ के गुलनार हो गए हैं
इसी की शबनम से, ख़ामुशी के
यह चन्द क़तरे, तेरी जबीं पर
बरस के, हीरे पिरो गए हैं
(शजर=पेड़, अज़ीमतर=महान, मशअल-बकफ़=हाथ में मशाल लिए हुए, महताब=चाँद)
संपादन- शमीम हनफ़ी
रुपान्तरण-सबा