उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।

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उसके लिए तो मैंने यहा तक दुआयें की
मेरी तरह से कोई उसे चाहता भी हो ।

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आखो में रहा, दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नहीं देखा ।

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कभी बरसात में शादाब बेलें सूख जाती है
हरे पेड़ो के गिरने का कोई मौसम नहीं होता ।

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कभी सात रंगो का फूल हूँ कभी धूप हूँ कभी धूल हूँ
मैं तमाम कपड़े बदल चुका तिरे मौसमों की बरात में ।

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इरादे हौसले, कुछ ख्वाब कुछ भूली हुई यादें
गज़ल के एक धागे में कई मोती पिरोए है ।

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बारिश बारिश कच्ची क़ब्र का घुलना है
जां लेवा एहसास अकेले रहने का ।

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पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
आँखो को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते ।
—-बशीर बद्र

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