रातके माथे पर जो बल पडे है,
चाँदके सफ़रका बयाँ है।
उजालोंके सूरज तो निकले है कबसे,
ये कौनसा चिलमन दर्मियाँ है।
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आओ एक आरजूकी तिली जलाओ,
कि रात आज काफी जगी हुई है।
कहेदो हवाओ से चूपचाप गुजरे,
कि निंदकी चिठ्ठी कहीं उड ग्ई है।
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तारे आँखों में चूभ रहे है,
चाद की लौ को जरा बूझा दो।
बादलोकी ऒढनी आज डालूँ सर पे,
कि रात आज काफ़ी जली जली सी है।
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ओसकी सारी बूँदे पी गया,
रातका दिया बडी प्यासमे जागा।
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नींदके एक एक पत्ते उड गये,
रातभी क्या तूफानी सी थी।
सपनोंकी आग कहाँ जल पाई,
तेरे तसव्वुरके सारे तिनके उड गये।
—–नेहल
Wow superb kavita on raat
Sent from my Samsung Galaxy smartphone.
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Sundar poem keep it up
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