कल रात जब मैने
बिना नींद के पथराइ आँखोसे देखा ।
आधा अधूरासा चाँद खिला था
मैले धूंधले आसमाँ के माथे पर ।
पेड चुपचाप से खडे थे
एक पत्ता भी हिलाये बिना सुन रहे थे;
एक-दूजे की गोद मे लेटे मकानो की फुसफुसाहट!
एक हवाकी लहर जो गूजरा करती थी हमारे दरमियाँ
आज न जाने कहा खो गई ?!
-नेहल
Beautiful!
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Thanks for visiting my blog and appreciating
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It was a pleasure, indeed! 😀
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