एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये,
ना उसने कुछ पूछा , ना हम बयां करने रुके !
ज़ींदगीकी की किताब आखरी पन्ने तक पलटते गये,
जो जिया हमने, वोह गहराइ में लब्ज़ कहां उतर पाये !
तेर्री परस्तीमें ही खूश होके जिते गये ,
तेरे मिलने के वादों पे एतबार कहां कर पाये !
_नेहल
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एक अर्से के बाद अपनी तन्हाई से रुबरु हो गये,
ना उसने कुछ पूछा ना हम बयां करने रुके
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